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सम्प्रदाय मार्ग अष्टांगिक श्रेष्ठ अरु सत्य के चार पद । धर्मों में श्रेष्ठ वैराग्य, ज्ञानी श्रेष्ठ द्विपादों में। वाणी का नित्य संयम, मन से भी संयमी होवे ।
पाप न संचरे देह में वह पावे ऋषिमार्ग को।' १. प्रारंभिक शिष्य:
अपनी तपश्चर्या के समय में बुद्ध अनेक तपस्वियों के संसर्ग में आए थे। वे सब सुख की शोध में शरीर को अनेक प्रकार से कष्ट दे देह-दमन कर रहे थे। बुद्ध को यह क्रिया भूलभरी लगी। वहाँ से उन्होंने उन तपस्वियों में से कइयों को स्वयम् को प्राप्त हुआ सत्य का उपदेश किया। इनमें से जिन ब्राह्मणों ने अन्न खाना शुरू करने पर बुद्ध का त्याग किया था वे उनके पहले शिष्य हुए।
१. मग्गानठिङ्गिको सेठो सच्चानं चतुरी पदा। विरागो सठ्ठो धम्मानं द्विपदानं च चक्खुमा ।। वाचानुरवी मनसा सुसंवुतो
कायेन च अपुसलं न कयिरा। एते तयो कम्मपथे विसोधये
आराधये मग्गमिसिप्पवेदितं ॥ (धम्मपद)