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२. सुखोपभोग:
शुद्धोदनने सिद्धार्थका बहुत लाड़-प्यारसे पालन किया । राजकुमारको उसके उपयुक्त शिक्षा दी गई, लेकिन साथ-ही-साथ संसारके विलासों की पूर्वि में भी किसी तरह कमी नहीं रखी गई । म यो धरा नामक गुणवान कन्याके साथ उसका विवाह हुआ आर उनके राहुल नामक पुत्र पैदा हुआ। अपने भोगोंका वर्णन सिद्धार्थने इस प्रकार किया है:
“ मैं बहुत सुकुमार था । मेरे लिए पिताने तालाब खुदवाकर उसमें विविध प्रकारकी कमलिनियां लगाई थी। मेरे वस्त्र रेशमी होते थे। धीत और उष्णता का असर न होने देने के लिए मेरे सेवक मुझ पर श्वेत छत्र लगाए रहते । ठंडी, गमा और वर्षा ऋतुमै राने के लिए अलग अलग तीन महल थे। जब मैं वर्षों के लिए बनाए हुए महल में रहने के लिए जाता, तब चार महीने तक बाहर न निकल, स्त्रियों के गीत
और वाद्य सुनते हुए समय बिताता | दूसरों के यहां सेवकों को हलका भोजन मिलता था, लेकिन मेरे यहां दास-दासियों को अच्छे भोजनके साथ मात भी मिला करता था।
३. विवेक बुद्धि:
इस प्रकार सिद्धार्थ की जवानी बीत रही थी। लेकिन इतने ऐश-आराम में भी सिद्धार्थका चिच स्थिर था। बचपन से ही वह विचार-शील भोर एकाग्र-चित्त रहता था। जो दृष्टिमें पड़ता उसका बारीकीसे निरीक्षण करना और उसपर गंभीर विचार करना उनका सहज-स्वभाव था। सदेव विचार-धील रहे बिना किस पुरुष को महत्ता प्रात हो सकती है? और कौन-सा ऐसा तुच्छ प्रसंग हो सकता है जो विचारक पुरुषके जीवन में अद्भुत परिवर्तन करने में समर्थ न हो'
१. पिछली टिप्पणी देखिए ।