SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाभिनिष्करण 'निरंतर जलती हुई अग्निमें वैसा आनंद और हास्य! अंधकार में भटकने वालो, मला दीपक क्यों नहीं शोषते लगभग पचीसो वर्ष पूर्व हिमालय की समामि चंपारण्यके उत्तरम, नेपालको तराई में कपिलवस्तु नामक एक नमरी थी। शाक्य कुलके यात्रियोंका व एक छोटया महामनरुचाक यज्य था। होटल नामक एक शाक्य उठका अध्यक्ष या| उसे पना कहा बादावा। शुद्धोक्नका विवाह गौतमवंश की मायावती और महाप्रजापति नामक दो सानाले हुमाया । मायावतीको एक पुत्र हुआ, लेकिन प्रसव केसात दिन बाद ही उसका स्वर्गवास हो गया । धियुके पालन का भार महामबापति पर आ गया । उसने शिशुका पालन अपने पुत्रकी तरह विथा । उस पासपने भी उसे अपनी सगी माँक समान मास बालक का नाम शिवा था। १. कोनु हासो किमानो निन्छ पम्मालित प्रति। - अन्धकारेन मोनो (१) पीपं असोय । २. इसी कारण बुद्ध शाक्य और मोका अनि नाम भी माद।
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy