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________________ अहिंसा के नये पहाडे डीकों में चलकर हम अहिंसा धर्म का विचार और भाचार करते आये हैं उन लीकों से निकल कर स्वतंत्र दृष्टि से विचार और उसके अनुरूप आचार की खोज करने की जरूरत है। ... : ५. हिंसा-अहिंसा की जाँच: इस जमाने में हिमा-अहिंसा के प्रश्न की जाँच विशेष कर मनुष्यों के परस्पर-व्यवहार के क्षेत्र में करना जरूरी है। मनुष्यों का परस्पर-व्यवहार हिंसात्मक, बसस्यपूर्ण और अशुद्ध रहे और केवल गंगे प्राणियों के प्रति व्यवहार तक ही हम अपनी अहिंसा सीमिन रखें, तो उसमें तारतम्य-भंग का दोष होता है । गांधीजी ने आज जिस अहिंसा की साधना का आरम्भ किया है, उसका क्षेत्र मनुष्यों का परस्पर-व्यवहार है। । । ६. अस्वस्थ मनुष्य समाज सारी दुनिया का मनुष्य-समाज अस्वस्थ (बेचैन ) हो रहा है। जिस अस्वस्थता का कारण प्रकृति का कोणी महान् कोप नहीं है। शेर या सिंह भादि जंगली जानवरों का उपद्रव एकाएक बढ़ गया हो, ऐसी भी कोई बात नहीं है। परन् मनुष्यमनुष्य के परस्पर-व्यवहार के कारण ही आज यह परेशानी है। मनुष्य ही मनुष्य को मारता है, यंत्रणाएँ देता है और बनेक प्रकार में पीड़ा देता है; और इसलिए आज सारा मनुष्य-समाज बड़े भारी संकट में या गया है।
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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