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माषण
७. शोषण की मांग : __ युदंघ का दावान वो सभी प्रत्यक्ष देख रहे हैं। परन्तु इस दांचानक के नीचे शोषण की आग धधक रही है। बनेक छोटे मनुष्यों को चूसकर एक बड़ा मनुष्य बनता है और अनेक निर्बल' प्रजामों को चूसकर एक बलवान प्रजा हो जाती है तब वे ईर्षा के कारणं एक-दूसरे का खून बहाने पर उतारू हो जाती हैं। खून बहाने में भी शोषक प्रजा का अपना खून नहीं बहाया जाता, किन्तु छोटे-छोटे दुर्बल लोगों का ही संहार होता है। यदि हम इस भयंकर हिंसा को रोक न सके, तो उबामा हुआ और सौ बार छना हुमा जन्तुहीन पानी और सब प्रकारके संकल्प छोड़ कर के प्राप्त किया हुआ आहार और पूरी तरह सावधानी से किया हुआ भोजन भी हमारी अहिंसा को तेजस्वी नहीं बना सकता।
८. इसलिए हमें अहिंसा का विचार करने की दिशा ही बदल देनी चाहिए। युद्धों की हिंसा बन्द करनेका मार्ग हमें सिद्ध करना ही चाहिए। ९. युद्ध की स्पर्धा ब्यापार : . जिस युगके युद्धों का विचार करने से मालूम होगा कि आज के युद्धों के पीछे "तेरे राज्य से मैं अपना राज्य बढ़ाकर दिखाऊँगा," यह पुराने जमाने के राजाबों की व्यक्तिगत स्पर्धा नहीं है बल्कि "तुम्हारे व्यापार से हमारा व्यापार बड़ा है," यह प्रजाकीय स्पर्धा है। हरएक व्यापारी और व्यापारी-जाति की यही मुपद है कि