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भाषण
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३. नई पीढ़ी और हिंसा:
बहिसा की तरफ झुकाव होते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि जैनोंपर-खासकर जैनों की नई पीढ़ीपर-इस विचार का असर ही नहीं हुआ है। मैं समझता हूँ कि जैनियों की नई पीढ़ी के विचार में "अहिंसा परम धर्म तो है; परन्तु हिंसा के लिए भी कुछ स्थान तो होना ही चाहिए । या फिर मुनियों के लिए अहिंसा की एक मर्यादा होनी चाहिए और संसारी व्यक्तियोंके लिए दूसरी होनी चाहिए। खान-पान के क्षेत्र में भी अहिंसा की पुरानी मर्यादा निबाहना अब असम्भव है।" कई जैनों के अब ऐसे विचार हो गये होंगे। उदाहरण के लिए, जैन डॉक्टर और बीमार होनेवाले कमी जैन व्यक्ति कॉड-लिवर, लिवर तथा दूसरे मांस-जन्य पदार्थों और वैक्सिन, अण्डे आदि का उपयोग करने लगे होंगे। उनका दिल इतना कड़ा तो हो ही गया होगा । युद्ध जैसे विषयों में जैनियों में, और उन लोगों में जिन्होंने अहिंसा का वरण नहीं किया है, बहुत विचार-भेद होगा, इसमें सन्देह है। दंगा-फसाद मा शत्र की चढ़ाई का सामना भी अहिंसाही से करने की गांधीजी की सूचना दूसरे लोगोंकी तरह जैनियों को भी अव्यवहार्य और बहिंसा को एकांगी साधनासे जन्मे हुए खब्त के जैसी मालूम होती हो, तो आश्चर्य नहीं। जैन ग्रन्थों में से यद्ध-धर्म के लिए अनुकूल प्रमाण भी खोज-खोजकर पेश किये जाते हैं।
४. ऐसी स्थिति में अहिंसा का नए सिरे से और जड़-मूल से पुनःविचार करनेकी हम सबको आवश्यकता है। आजतक जिन