________________
महावीरः .
..
-
प्रयत्न करते हैं। जैसे किरण के बारे में ईर' तत्व का आन्दोलन प्रकाश के अनुभव और विस्तार के कारण की कल्पना देता है। बान्दोलन की ऐसी कल्पना 'वाई' कहो जाती है। ये, आन्दोलन है ही, यह प्रमाणों से सिद्ध नहीं होता। ऐसी कल्पना जितनी सरक
और सब स्थूल परिणामों को समझाने में ठीक होती है, उतनी ही वह विशेष प्राहा होती है। परन्तु भिन्न-भिन्न विचारक जब भिन्नमिन्न कल्पनाएं और वाद रचकर एक ही परिणाम को समझाते हैं, तब इन वादों में मतभेद पैदा हो जाता है। माया-बाद. पुनर्जन्म वाद आदि ऐसे वाद हैं। ये जीवन और जगत को समझानेवाली कल्पनाएँ ही हैं, यह नहीं भूलना चाहिए। जिसकी बुद्धि में जो चाद रुचिकर हो उसे स्वीकार कर दोनों को समझ लेने में दोष नहीं है। लेकिन इस वाद को जब प्रमाणित वस्तु के रूप में स्वीकार किया जाता है, तब वाद-भेद के कारण झगड़े की प्रवृत्ति वा जाती है। धर्म के विषय में अनेक मत-पंथ अपने वाद को विशेष सयुक्तिक पताने में माथा-पच्ची करते रहते हैं। इतने से ही यदि वे रुक जाते तो ठीक होता; लेकिन जब उन वादों को सिद्धान्त के रूप में मानने पर उससे प्रत्यक्ष अनुभव में आनेवाले परिणामों से भिन परिणामों का तर्क-शाब के नियमों से अनुमान निकालकर जीवन का ध्येय, धर्माचार की व्यवस्था, नीति-नियम, भोग तथा संयम की मर्यादानों जादि की रचना की जाती है, तब तो कठिनाइयों का अन्त ही नहीं रहता। जिज्ञासु को प्रारम्भ में कोई एक बाद स्वीकार
तोही पता है, लेकिन उसे सिद्धांत मानकर अत्याग्रह नहं रखना