________________
चाहिए । जिस कल्पना पर स्थित होंगे, वैसा ही अनुभव भी होगा। चित्त में ऐसा आश्चर्य है। जो व्यक्ति अपने को राजा मानता है उसकी कल्पना इतनी हद हो जाती है कि वह अपने में राजापन का अनुभव करने लग जाता है। लेकिन कापना या वाद का यह साक्षात्कार सत्य का साक्षात्कार नहीं है। किसी वाद या कल्पना से भिन्न अनुभव ही सत्य है।
इस तरह विचार करने पर मालूम होगा कि मित्रता का मुख'. प्रत्यक्ष है, वैराग्य की शान्ति प्रत्यक्ष है, माता-पिता या गुरु की सेवा का शुभ परिणाम प्रत्यक्ष है, माता-पिता-गुरु आदि को कष्ट देने पर होनेवाली तिरस्कार-पात्रता प्रत्यक्ष है। ऐसा ही भगवान महावीर कहते हैं कि स्वर्ग-सुख परोक्ष है, मोक्ष (मृत्यु के पश्चात् जन्म-रहित अवस्था) सुख परोक्ष है, किन्तु प्रथम ( निर्वासना और निस्पृहता) का सुख तो प्रत्यक्ष है।