SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेकिन जड़ सृष्टि के प्रति वैराग्य का इंद्रियों सुख में अनासक्ति । पाँचों विषय निजी सुख-दुख के कारण नहीं 1 ऐसा समझ कर इस विषय में निगह हुए बिना प्रेम-वृद्धि विकास होना या आत्मोन्नति होना असम्भव है। प्रेम तो हो, लेकिन उसमें विवेक न हो तो वह हो जाता है। जिन पर प्रेम है, उन्हें सच्चा सुख पहुँचाने की इच्छा और फिर उसका भी कभी वियोग होगा हो-इस सत्य को जानकर उसे स्वीकार करने की तैयारी और प्रम होने पर भी दूसरे का पालन-ये विवेक की निशानियाँ हैं। ऐसे विवेक अभाव में प्रेम मोह-रूप कहलाएगा। २. वाद : जो परिणाम हमें प्रत्यक्ष रूप में मालूम होते हैं, लेकिन उनके कारण अत्यन्त सूक्ष्मतापूर्ण होने या किन्हीं दूसरे कारणों से प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा निश्चित नहीं किये जा सकते, उन परिणामों को समझाने के लिए कारणों के बारे में जो कल्पनाएँ की जाती है, मे बाद(Hypothesis theory ) कहलाते हैं। उदाहरणार्थ: हम रोज देखते हैं कि सूर्य की किरणें पृथ्वी तक बाती हैं, यह परिणाम हम पर प्रत्यक्ष है। कन्तु ये किरणें करोड़ों मीलों का असर काटकर हमारी आँखों से कैसे टकराती है, इतनी तेज़ किम प्रकाशमान वस्तु में ही न रहकर आगे कैसे बढ़ती है-इसका कारण इस प्रत्यक्ष 'रूप से नहीं जान सकते। लेकिन, कारण के बिना कार्य नहीं होता विश्वास होने पर हम किसी भी कारण की कल्पना करने १
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy