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________________ उत्तर काल ३. निर्वाण : . ७२ वर्ष की उम्र तक महावीर ने धर्मोपदेश किया, उन्होंने जैन धर्म को नया रूप दिया । उनके समय में पार्श्वनाथतीर्थंकर का सम्प्रदाय चल रहा था। आगे जाकर महावीर और पार्श्वनाथ के अनुयायियों ने अपने मतभेद मिटाकर जैन धर्म को एक रूपः किया था और तब से सभी जैनों ने महावीर को अन्तिम तीर्थकर के रूप में मान लिया। ७२ वें वर्ष में आश्विन ( उत्तर हिन्दुस्तानी कार्तिक ) बढी अमावस्या के दिन महावीर का निर्वाण हुआ। . ४. जैन सम्प्रदायः महावीर के उपदेश का परिणाम उनके समय में कितना था, यह जानना कठिन है। परन्तु उस सम्प्रदाय ने अपनी नींव हिन्दुस्तान में स्थिर कर रक्खी है। एक समय वैदिकों और जैनों में भारी झगड़े होते थे। लेकिन आज दोनों सम्प्रदायों के बीच किसी प्रकार का पैर भाव नहीं है। इसका कारण यह है कि जैन धर्म के कितने ही तत्व, वैदिकों ने विशेष करके वैष्णव सम्प्रदाय और पौराणिकों ने इस शान्ति से अपने में समा लिये हैं और इसी तरह जैनों ने भी देशकाल के अनुसार इतने वैदिक संस्कारों को स्वीकार कर लिया है कि दोनों धर्मों के मानने वालों के बीच प्रकृति या संस्कार का बहुत भेद बब नहीं रहा । आज तो जैनों को वैदिक बनाने की या वैदिकों को जैन बनाने की आवश्यकता भी नहीं है। और यदि ऐसा हो भी तो किसी दूसरे वातावरण में प्रवेश करने जैसा भी नहीं लगेगा। तत्वज्ञान समझाने के दोनों के अलग-अडग बाद हैं। लेकिन दोनों का अंतिम निश्चय एक ही प्रकार का है.
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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