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महावीर
साथ ही साधन मार्ग भी। आज का वैदिक धर्म अधिकतर मति मार्गी है। वही हाड जैन धर्म के हैं। इष्टदेव की अत्यन्त भक्ति द्वारा चित्त शुद्ध करके मनुष्यत्व के सभी उत्तम गुण सम्पादित कर और अन्त में उनका भी अभिमान त्यागकर आत्मस्वरूप में स्थिर रहना, यह दोनों का ध्येय है। दोनों धर्मो ने पुनर्जन्म के सिद्धांत को स्वीकार करके ही अपनी जीवन-पद्धति रची है। सांसारिक व्यवहार में आज जैन और वैदिक दिन-दिन निकट सम्पर्क में आते जाते हैं। बहुतेरे स्थानों में दोनों में रोटी-बेटी व्यवहार भी होता है। फिर भी एक दूसरों में धर्म के विषय में अत्यन्त अज्ञान और गैरसमझ भी है। यह तो बहुत कम होता है कि जैन वैदिक धर्म, अवतार, वर्णाश्रम व्यवस्था आदि के विषय में कुछ न जानता हो, लेकिन जैन धर्म के तत्व, तीर्थंकर इत्यादि को एक वैदिक का कुछ भी न जानना बहुत सामान्य है । यह वांछनीय स्थिति नहीं हैं। सर्व धर्मों और सब ग्रंथों का अवलोकन कर सर्व मतों एवं पंथों के बारे में निर्वैर वृत्ति रखकर, प्रत्येक में से सारासार का विचार कर सार को स्वीकार कर असार का त्याग करना यह प्रत्येक मुमुक्षु के लिए आवश्यक है। ऐसा कोई धर्म नहीं है, जिसमें सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य इत्यादि को स्वीकार न किया गया हो। ऐसा कोई भी धर्म नहीं है जिसमें समय समय पर अशुद्धियों का प्रवेश न हुआ हो । अतः जैसे वर्णाश्रम-धर्म का पालन करते हुए भी मिध्याभिमान रखना उचित नहीं है, वैसे ही अपने धर्म का अनुसरण करते हुए भी उसका मिथ्याभिमान त्याज्य ही है ।