SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तर काल १. शिष्य शाखा : महावीर ने जैन धर्म में नई चेतना डालकर उसकी पुनः प्रतिष्ठा की। उनके उपदेश से जनता पुनः जैन धर्म के प्रति आकृष्ट हुई। सारे देश में फिर से वैराग्य और अहिंसा का नया ज्वार चढ़ने ढगा । बहुतेरे राजाओं, गृहस्थों और स्त्रियों ने संसार त्याग कर संन्यासधर्मं प्रहण किया। उनके उपदेश की बदौलत जैन धर्म में सहार सदा के लिए बन्द हुआ। इतना ही नहीं, उसके कारण वैदिक धर्म में भी अहिंसा को परम धर्म माना गया और शाकाहार का सिद्धान्त वैष्णवों में बहुत अंश में स्वीकृत हुआ । २. जमालि का मतभेद : संसार का त्याग करने वालों में उनके जामाता जमालि और पुत्री प्रियदर्शना भी थी। आगे जाकर महावीर से मतभेद होने पर जमाल ने अलग पंथ स्थापित किया। कहा जाता है कि कौशाम्बी के राजा उदयन की माता मृगावती महावीर की परम भक्त थी । बाद में वह जैन साध्वी हो गई थी। बुद्ध चरित्र में कहा गया कि उदयन की पटरानी ने बुद्ध का अपमान करने की चेष्टा की थी। हो सकता है कि इस पर से जैनों और बौद्धों के बीच मतपंथ की ईर्षा के कारण झगड़े चलते रहे हों । (९२)
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy