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________________ [ १० ] बौद्ध-जैन संवाद में मांसाहार निषेध जैनागम सूत्रकृतांग के दूसरे श्रुत स्कन्ध के छठे अध्ययन में एक प्रसंग आता है जो इस प्रकार है: श्रम भगवान् महावीर का चतुर्मास राजगृह में था । चतुर्मास के बाद भी भगवान् राजगृह में धर्मप्रचारार्थ ठहरे आशातीत फल हुआ । उस सतत प्रचार का एक बार भगवान् के शिष्य आर्द्रकमुनि भगवान् को वन्दन करने के लिए गुणशील चैत्य में जा रहे थे। रास्ते में उनका शाक्यमुनि के भिक्ष से इस प्रकार वार्तालाप हुआ। उस वार्तालाप में जीवहिंसा और माँसाहार सम्बन्धी जैनों का क्या सिद्धान्त है, इसका भी खुलासा आर्द्रकमुनि ने किया है जो कि इस प्रकार है :- निग्रंथ आर्द्रकमुनि ने शाक्यमुनि के भिक्षु से कहा कि --- 41 'जीवों की खुले आम हिंसा करना सयतों (मुनियों) के लिए सर्वथा अयोग्य है । जो ऐसे कामों का उपदेश देते हैं और जो उसे सुन कर उचित समझते हैं वे दोनों अनुचित काम करने वाले हैं । " महाशय ! इस सिद्धान्त से तो तत्त्वज्ञान नहीं पा सकते, लोक को करामलकवत् प्रत्यक्ष नहीं कर सकते । भिक्षुजन ! जो श्रमण शुद्ध आहार करते है, जीवों के कर्मविपाककी चिन्ता करते हुए आहारविधि के ोषों को टालते है और निष्कपट वचन बोलते हैं, वे ही संयत हैं और यही संयतों का धर्म है । "जिनके हाथ लहू में रंगे हैं, ऐसे असंयत मनुष्य दो हजार बोधिसत्त्व (बौद्ध) भिक्षुओं को नित्य भोजन कराते हुए भी यहाँ निन्दा के पात्र
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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