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वंसा परिशुद्ध गौरे चमड़े का रंग नष्ट हो गया था ।" ( वही पृ० ३४८) मुझे लगा कि :- " देह दंडन दुःखकारी है, धीर-वीरों को शोभा देने लायक नहीं है, अनर्थवाह है ( दुक्खो अनरियो अनत्य संहितो ) | और मैंने स्थूल आहार ग्रहण करना प्रारंभ कर दिया ।"
अन्त में बोधिसत्त्व के मन ने यह निश्चय किया कि तपश्चर्या बिलकुल निरर्थक है | अतः तपश्चर्या का त्याग कर दिया ।
इस उपर्युक्त विवरण से यह ज्ञात होता है कि गौतम बुद्ध ने घर से निकलने के बाद 'आलार कालाम' आदि योगियों के पास रहकर उन के हठयोग की क्रियाएँ सीखों तथा उनकी मान्यताओं के अनुसार तप आदि भी किये, किन्तु जब वह वहाँ से ऊब गये तो दूसरे धर्म सम्प्रदाय में दीक्षित हुए। इस प्रकार छः सात वर्षो तक अनेक धर्म संप्रदायों में दीक्षित होकर छोड़ते गये । अर्थात् पूर्व-पूर्व गुरुओं की चर्या तथा तत्त्व का मार्ग छोड़ कर अपनी विचारधारा से एक नये संप्रदाय की स्थापना की । वह संप्रदाय आज बुद्धधर्म के नाम से प्रसिद्ध है ।
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