________________
( ५९ )
गौतम बुद्ध "सारिपुत्त" से कहते हैं कि "मैं बताता हूँ कि मेरी तपस्विता के सी थी':
1
"में नंगा रहता था । लौकिक अचारों का पालन नहीं करता था । हथेली पर भिक्षा ले कर खाता था। अगर कोई कहता कि 'मदन्त', इधर आइये' तो मैं नहीं सुनता था। बैठे हुए स्थान पर ला कर दिये हुए अन्न को, अपने लिए तैयार किये हुए अझ को और निमंत्रण को में स्वीकार नहीं करता था। जिस बर्तन में अन्न पकाया गया हो उसी बर्तन में अगर वह अन्न लाकर मुझे दिया जाता तो मैं उसे ग्रहण नहीं करता था। देहरी या डण्डे के उस पार रह कर दी गयी भिक्षा को में नहीं लेता था । ओखली में से अगर कोई खाने का पदार्थ ला कर दिया जाता तो में उसे ग्रहण नहीं करता था । दो व्यक्ति भोजन कर रहे हों और उन में से एक उठ कर भिक्षा दे तो में उसे ग्रहण नहीं करता था । गर्भिणी, बच्चे को स्तनपान कराने वाली या पुरुष के साथ एकान्त सेवन करने वाली स्त्री से भी मैं भिक्षा नहीं लेता था। मेले या तीर्थ यात्रा में तैयार किये गये अन्न की भिक्षा में नहीं लेता था । जहाँ कुत्ता खड़ा हो या मक्खियों की भीड़ और frofमनाहट हो वहां भिक्षा नहीं लेता था । मत्स्थ, मांस, सुरा आदि वस्तुएं नहीं लेता था । एक ही घर से मिक्षा लेकर एक ही ग्रास पर में रहता था । या दो घरों से भिक्षा ले कर दो ग्रासों पर रहता था और इस प्रकार सात दिन तक बढ़ाते हुए सात घरों से भिक्षा ले कर सात ग्रास खा कर में रह जाता था । में एक कलछा भर अन्न भी लेता था और इस प्रकार सात दिन तक सात कलछे अन्न ले कर उस पर निर्वाह करता था । एक दिन छोड़ कर यानी हर तीसरे दिन भोजन करता था । इस प्रकार उपवासों की संख्या बढ़ाते-बढ़ाते सप्ताह में एक बार या पखवाड़े में एक बार भोजन किया करता था ।
"मैं बाढ़ी मूछें और बाल उखाड़ डालता था। में खड़ा रह कर तपस्या करता था अकड़ बैठ कर तपस्या करता था ।
"अनेक वर्षों की चूक से मेरे शरीर पर मेल की परतें जम गयी थीं ।