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________________ [ ९ ] तथागत गौतम बुद्ध द्वारा निग्रंथ-चयों में मांस-भक्षण निषेध हम लिख चुके है कि बुद्ध के समय में सब से बड़े श्रमण संघ छ: थे। इन सब में निर्ग्रन्थों (जैनों) का नाम ही सर्वप्रथम आता है। वे राजगृह में अथवा उसके आस-पास के क्षेत्रों में अधिक संख्या में निवास करते थे। __ गौतम बुद्ध संसार छोड़कर निर्वाण मार्ग जानने के लिये योगियों के शिष्य बने । बौद्ध ग्रंथ "ललितविस्तर" में लिखा है कि बोधिसत्त्व (गौतम बुद्ध) पहले वैशाली गये और वहां आलार कालाम के शिष्य बने । वे योगी बड़े ज्ञानी थे और जाति के ब्राह्मण थे। बुद्ध ने उनके पास से योग की बातें सीखी, तप भी किया, किन्तु उससे उन्हे सन्तोष नहीं हुआ, तब बुद्ध ने उन्हें छोड़ दिया। बौद्ध ग्रंथ "मज्झिमनिकाय" के "महासिंहनाद सुत्त" में बुद्ध की तपश्चर्या का वर्णन है। उन्होंने अनेक प्रकार की तपश्चर्याएं की और छोड़ीं। अन्त में बोधिसत्त्व ने उस समय के श्रमण व्यवहार के अनुसार तीव तपश्चर्या करने का निश्चय किया और प्रसिद्ध धमक नायकों का तस्वज्ञान जान लेने के उद्देश्य से राजगृह गये। वहां सब श्रमण सम्प्रदायों में न्यूनाधिक मात्रा में तपश्चर्या दिखलायी देने से उन्हें ऐसा लगा कि उन्हें भी वैसी ही तपश्चर्या करनी चाहिये। इसलिये "सुत्तनिपात" के "पव्वज्जा सुत्त" की अन्तिम गाथा में बुद्ध स्वयं कहते हैं कि अब मैं तपश्चर्या के लिये जा रहा हूँ। उस समय राजगृह के चारों ओर जो पहाड़ियाँ हैं उन पर निग्रंथ (जैन) श्रमण तपश्चर्या करते
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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