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________________ ( ५३ ) थे इसलिये तथागत बुद्ध के प्रति उन्हें अगाध श्रद्धा होना स्वाभाविक था । उन्होंने अपनी पुस्तक "भगवान् बुद्ध" में यह बात सिद्ध करने का भरसक प्रयत्न किया कि गौतम बुद्ध मांसाहारी नहीं थे। यह भी उल्लेख किया कि उस समय जैनादि उन पर मांसाहार का आक्षेप भी किया करते थे । परन्तु जब कौशाम्बी जी तथागत बुद्ध और उसके भिक्षु संघ को निरामिष भोजी सिद्ध करने में असमर्थ रहे तब उन्होंने भगवान् महावीर और उनके श्रमण संघ पर भी मांसाहार का दोष लगाने की चेष्टा की । नागमों के सूत्रपाठों का विपरीतार्थ कर इस बात को सिद्ध करने की जो उन्होंने अनाधिकार चेष्टा को है उसके विषय में हम आगे चल कर विवेचन करेंगे । हमारी धारणा है कि उन्हें इस बात की चिन्ता थी कि तथागत गौतम बुद्ध एवं उनके भिक्षु मांसाहारी होने से जैन तीर्थकर भगवान् महावीर, उनके निर्ग्रन्थ श्रमणों, व्रतधारी श्रावकों तथा अव्रति गृहस्थों से भी कहीं हीन न गिने जावें, इसलिए उन्होंने निर्ग्रन्थ परम्परा पर ऐसी अनुचित आक्षेप करने की चेष्टा की है। एक अंग्रेज लेखक ने ठीक ही कहा है कि "शारीरिक सन्तान (पुत्र-पुत्री आदि) से भी मानसिक सन्तान (अपने विचारों) पर मनुष्य को अधिक प्रेम होता है।" अपने अभिप्राय पर अयोग्य अनुराग, एकान्त आग्रह मनुष्य को सत्य की पहिचान करने में बड़ी बाधा उत्पन्न करते हैं । सारांश यह है कि कौशाम्बी जी ने तथागत गौतमबुद्ध के मांसाहार के दोष को ढांकने के लिये ही यह असफल प्रयत्न किया है । बुद्ध ने केवल अहिंसा का उपदेश दिया था परन्तु भगवान महावीर ने अहिंसा को मूल सिद्धान्त का दर्जा देकर चारित्र व्रत में सर्वप्रथम सम्मिलित किया । बौद्ध मत की अहिंसा थोथा उपदेश बन कर ही रह गयी । क्योंकि तथागत गौतम बुद्ध उसे अपने आचार और व्यवहार में न उतार सके। यदि उन्होंने अपने आचार और व्यवहार में उतारा होता तो बौद्ध जगत् कदापि मांसाहारी न होता । इस से स्पष्ट है कि वह अहिंसा धर्म के मर्म को समझ ही न पाये । भगवान् महावीर मे अपने
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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