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(Power and popularity ) प्राप्त करने के लिये होड़ मच रही है । परन्तु कहावत है कि "All that glitters is not gold ) ( प्रत्येक चमकने वाली वस्तु सोना नहीं होती ) । इस उक्ति के अनुसार श्रुति युक्ति और अनुभूति द्वारा सुज्ञ और विज्ञजन ( People of Culture and common sense ) के लिये यह समझना कोई कठिन बात नहीं है कि तीर्थकर होने के लिये जिस योग्यता का होना आवश्यक है वह भगवान् महावीर के सिवाय उनके समकालीन अन्य किसी भी में प्रवर्तक में नही थी ।
भगवान् महावीर के परम पवित्र प्रवचन का आधार मनःकल्पना और अनुमान की भूमिका पर तो था ही नहीं। उनका तत्त्वज्ञान वास्तविकता पर अवलम्बित है। ऐसा कहना कोई अत्युक्ति न होगी कि उनका पदार्थ - विज्ञान और परमाणुवाद आधुनिक विज्ञान के ( Atomic and moleculer~~~theories) अणुवाद की मान्यता से तो क्या परन्तु डाक्टर एन्स्टीन, एडिंगटन, स्पेन्सर, डेल्टन और न्यूटन की ( theories ) मान्यताओं को भी मात करता है। भारतीय तथा पाश्चात्य अनेक विद्वानों ने भगवान् महावीर के सिद्धान्तों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है ।
जर्मन विद्वान डा० हर्मन जेकोबी कहते हैं कि :--
In conclusion let me assert my conviction that Jainism is an original system, quite distinct from and independent of all others, and that, therefore it is of great importance for the study of philosophical thought and religious life in India.
अर्थात् - अंत में मुझे अपना निश्चित विचार प्रगट करने दो, मैं कहूंगा कि जैनधर्म के सिद्धान्त मूल सिद्धान्त हैं । वहु धर्म स्वतन्त्र और अन्य धर्मों से सर्वथा भिन्न है। प्राचीन भारतवर्ष के तत्त्वज्ञान का और धार्मिक जीवन का अभ्यास करने के लिये यह बहुत उत्तम है ।
ऐसे सर्वोच्च आचरण तथा उपदेश करने वाले महान् तत्त्वज्ञानी,