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________________ ( ५० ) बाहर कूद कर त्याग भूमि पर आने वाले तो कोई अलौकिक व्यक्ति ही नज़र आते हैं। भगवान् महावीर ने जो उपसर्ग तथा परिषह सहन किये उनका वर्णन करते हुए हृदय काँप उठता है । धन्य है उस महाप्रभु महावीर को जिन के हृदय में मित्रों के श्रेय के समान ही शत्रुओं के श्रेय का भी स्थान था । जैनागमो में कहा है कि वे मात्र क्षमा में ही वीर न थे किन्तु दानवीर दयावीर, शीलवीर, त्यागवीर, तपोवीर, धर्मवीर, कर्मवीर और ज्ञानवीर आदि सर्व गुणों में वीर शिरोमणि होने मे उनका वर्धमान नाम गौन होकर महावीर नाम विख्यात हुआ । भगवान ने कहा किसी देश राष्ट्र और जगत को जीत कर वश में करने वाला सच्चा विजेता नहीं, किन्तु जिस ने अपनी आत्मा को जीता है ( self conqueror) वही सच्चा विजेता है । उनका दर्शाया हुआ अहिंसाबाद, कर्मवाद, तत्त्ववाद, स्याद्वाद, सृष्टिवाद, आत्मवाद, परमाणुवाद, और विज्ञानवाद इत्यादि त्येक विषय इतना विशाल और गम्भीर है जिनका अभ्यास करने से उनकी सर्वज्ञता स्पष्ट सिद्ध होती है । उन्होंने सर्वसाधारण जनता को मानव संस्कृति विज्ञान (Scicnce of Human culture ) के विकाश की पराकाष्ठा पर पहुंचने के लिये मुक्ति महातीर्थ का राजमार्ग ( Royal road) सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान, और सम्यक् चारित्र (Right faith, Right knowledge and Right conduct ) रूप अपूर्व साधन द्वारा पद्धतिसर दर्शाया । इसलिये वे तीर्थंकर कहलाये । संसार में तीर्थंकर पद सर्वोत्कृष्ट, सर्वोपरि और सर्वपूज्य होने के कारण उस काल में बौद्धधर्मादि भिन्न-भिन्न धर्मों के संस्थापक और संचालक अपने आपको तीर्थंकर कहलाने में उत्सुकता पूर्वक प्रतिस्पर्द्धा की दौड़धूम मचा रहे थे । अर्थात् उस समय मत प्रतिस्पर्द्धा (Religious (rivalry ) की होड़ा - होड़ मच रही थी। जैसे कि आज सत्ता और प्रसिद्धि
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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