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बेचने वाला, --मांस पकाने वाला, ७-मांस परोसने वाला, ८-तमा मांस साने वाला ये सब पातक (कसाई-हिंसक) हैं।
३--भगवान् महावीर ने मांसाहार, मदिरा बोर अभय पार्यों का आहार कितना पाप मूलक बतलाया है इसके विषय में जैनागम सूत्रकृत्तांग में वर्णन है :
"जो लोग मदिरा, मांस आदि अभक्ष्य पदार्थों का आहार करते हैं वे चाहे मल-मल कर स्नान करें, चाहे नमक आदि स्वादु पदार्थों का त्याग कर दें उन्हें कभी मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती, वे तो अनर्थ के करने वाले हैं।" सूत्र पाठ यह है :----
''पामोसिणाणादिसु गस्थि मोक्खो, सारस्स लोणस्त्र अणासएणं । ते मज्जमंज लसुणं च भोच्चा, अनत्य वास परिकप्पयंति ॥१३॥
(सूत्रकृताप श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन ५) ४--शराबी और मांसाहारी को कितनी घोर यातनाएं नरक गति में भोगनी पड़ती हैं इसका भी विस्तृत वर्णन जैनागमों में पाया जाता है।
५-आचारांग सूत्र में भगवान महावीर फरमाते हैं कि “जन भिक्षु को यदि कहीं मांस मछली अथवा उसको खाल काटे आदि होने का पता लग जावे तो वह वहां न जाए। किसी प्राणी, किसी भूत, किसी जीव, किसी सत्व को न मारना चाहिए. न सताना चाहिए, व कष्ट पहुंचाना साहिए, सही धर्म शुद्ध है।
६-सूत्रकृतांग में फरमाते हैं कि जन साधु मांस-मदिरा का त्याम करे। जो मांस मदिरा का सेवन करते हैं वे बजानता से पाप करते हैं, उनका मन अनविन है और बचन भी झूम है (सूपक्कलाँग अ०-२)।
७-उत्तराध्ययन सूत्र में मदिरा पान, मांस भक्षण तथा दुराचरण आदि से नारसी सी साधु का बना होता है। हिंसक या करने वाले, झूठ बोलने वाले, बापडी, कुगलखोर, अब सथा माँस-मदिरा प्रक्षी जो