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भगवान् महावीर के मांसाहार
सम्बन्धी विचार
१-करुणा के प्रत्यक्ष अवतार भगवान महावीर ने मांसाहार को दुव्यसनों में माना है और इसे नरक का कारण भी बतलाया है। जैनागम स्थानांग सूत्र के चौथे स्थान में भगवान महावीर फरमाते हैं कि चार कारण से प्राणी नरक में जाता है-(१) महारम्भ से, (२) महापरिग्रह रखने से; (३) पंचेन्द्रिय जीवों का वध करने से, (४) मांस भक्षण करने से । पंचमांग भगबती मूत्र, उववाई सूत्र तथा स्थानांग सूत्र में भी इसी प्रकार का वर्णन है:
वह सूत्र पाठ इस प्रकार है .-- "बउहि ठाणे हि जीवा रतियत्ताए कम्मं पकरति तं जहा:महारंभताते, महापरिग्गहयाते पंचिदियवहग कुणिमाहारेण ॥"
(गणांग सूत्र डा० ४) २-जैन साहित्य में घातक (कसाई-हिंसक) किन्हें कहना चाहिए उसका वर्णन इस प्रकार मिलता है :
"अनुमन्ता, विशसिता, निहन्ता, क्रय-विक्रयो।
संस्कर्ता, बोपहर्ता च खादकाश्चेति धातकाः ॥" अर्थात १-मारने की सलाह देने वाला, २---प्राणियों के शरीर को काटने वाला, ३-मारने वाला, ४--मांस मोल लेने वाला, ५-मांस