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________________ विकाधिक निकट पहुंचे गये तखों-त्यों उनकी मम्बीर शान्ति बाले ली। जिसके प्रभाव से उन्होंने रामशेष को सर्वथा क्षय कर केवलज्ञान की प्राप्ति कर सर्वज्ञत्व प्राप्त किया। भगवान् महावीर के समकालीन अनेकों धर्मप्रवर्तक थे उनमें से १. तथागत गौतम बुद्ध, २. पूर्णकश्यप, ३. संजय बेलठ्ठिपुत्त, ४. पकुधकच्चायन, ५. अजितकेस कम्बलि और ६. मंखली गोशालक के नाम मिलते हैं। (भगवान महावीर इनके अलावा थे)। उस समय के सर्व धर्म-प्रवर्तकों से भगवान् महाबीर के तप-त्यागसंयम तथा अहिंसा की जनता के मानस पर बहुत गहरी छाप पड़ी थी, क्योंकि उन्होंने राग-द्वेष आदि मलिन वृत्तियों पर पूर्ण विजय प्राप्त की थी, जिससे वे वीतराग बने थे। इस साध्य की सिद्धि जिस अहिंसा, जिस तप या जिस त्याग में न हो सके वह अहिंसा, तप तथा त्याग कैसा ही क्यों न हो पर आध्यात्मिक दृष्टि से अनुपयोगी है। अतः प्रभु महावीर ने राग द्वेष की विजय पर ही मुख्यतया भार दिया था और अपने आचरण में आत्मसात कर उन्होंने अपनी काया, वाणी तथा मन पर काबू पाया था अर्थात अपने दैहिक और मानसिक सब प्रकार के ममत्व का त्याग कर राग-द्वेष को सर्वथा जीतने से समदृष्टि बने थे। इसी दृष्टि के कारण भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट जन धर्म का बाह्य और अभ्यन्तर, स्थूल-सूक्ष्म सब प्रकार का आचार साम्यदृष्टिमूलक, अहिंसा की भित्ति पर ही निर्मित हुआ है। जिस आचार के द्वारा अहिंसा को रक्षा और पुष्टि न हो सके ऐसे किसी मी आचार को जैन परम्परा मान्य नहीं रखती। यद्यपि अन्य सब धार्मिक परम्पराओं ने हिंसा तत्व पर न्यनाषिक भार दिया है, पर जैन परम्परा ने इस तस्व पर जितना भार दिया है और उसे जितका व्यापक बनाया है, उतना भार और उतनी व्यापकता अन्य पर्वपरपस में ली नहीं मासी । नपर्म ने मनुष्य, पशु, पक्षी, कीड, पतंग बौर स्नमति ही नहीं किन्तु पाभिव, अलीम, मादि सूक्ष्मातिसूक्ष्म जन्तुषों तानी हिंसा के मास्मोपाय की भावना मारा, निवृत्त होने के स्किहा है।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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