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________________ बकर लाया । बिल्छू, सर्प, नकुले, चूहें बनकर कोटा तथा मांस को नोचा बार खायो । हाथी-हषिनी बने कर सूंड और दांतों से मारा, पैरों तले सदा तो भी प्रेम ध्यानारूढ़ रहे । पिशाच बनकर अट्टहास करके डराया। सिंह बनकर नख और दाढ़ों से चीरा फाड़ा। सिखाये और त्रिशला का रूप करके पुत्र का स्नेह दिखलाते हुए विलाप किया। स्कंधावार के लोग बनाकर प्रभु के पैरों में आग जला कर उसके पैरों पर हांडी रॉधी। चांडाल का रूप बनाकर पक्षियो के पिंजरे प्रभु के कान, बाहु आदि के साथ साथ लटका कर पक्षियों से शरीर नुचवाया। भयंकर आँधी से प्रभु को गेद की तरहबार-बार उठाया और धरती पर पटका। उत्कलिका पवन चलाकर प्रभुको चक्र के समान धुमाया । भारी वजन वाला चक्र डालकर प्रभु को घुटनों तक भूमि में धसाया । प्रभात का समय बनाकर कहने लगे कि 'प्रभु ! विहार करो' परन्तु प्रभु तो अवधि तथा मनःपर्यव ज्ञानी थे, इसलिये जानते थे कि अभी तो रात है। देवांगनाओं के रूप बनाकर हावभाव-कटाक्षादि- करके उपसर्ग किये। इन बीस प्रकार के उपसर्गो से प्रभु किंचित् मात्र भी विचलित नही हुए, तब संगम देवता ने छ: मास तक प्रभु के साथ-साथ रहकर उन्हें उपसर्ग किये । अन्त में थक कर वह अपनी प्रतिज्ञा से भ्रष्ट होकर चला गया। ८ अनार्य देश में प्रभु को बहुत परिषह उपसर्ग हुए । ९. अन्त में प्रभु के दोनों कानों में गवाले ने बाँस की कीलियाँ ठोंकी, उनसे बहुत पीड़ा हुई। भगवानने इन उपसर्गों को बड़ी शान्ति और धर्य से सहन किया और पर्व-संचित कर्मों को भोग लिया, जिससे आप के सब घातिया कर्म क्षयं हो गये । यदि प्रभु महावीर ऐसे परिषहों को शान्ति तथा धैर्य के साथ सहन न करते और कठोर तप न करते तो पूर्वोपाजित पापकर्म क्षय म होते और न ही वे केवल ज्ञान-केवल दर्शन प्राप्त करते; और न ही अन्त में सर्व कर्मों को क्षय कर मोक्ष प्राप्त करते। केवल ज्ञान प्राप्त करने के बाद महावीर सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, अरिहंत जिन, केवली रूप हो गये। विश्व के सबं चराचर पदार्थों का साक्षात्कार उन्हें इस प्रकार हो गयां जैसे हाथों की अंगुलियों ।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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