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________________ ( २८ ) को दूर कर केवलज्ञान - केवलदर्शन को प्राप्त किया। इस साधनावस्था प्रभु महावीर ने कैसे-कैसे घोर परिषह और उपसर्ग सहन किये थे, उनका संक्षेप में यहाँ वर्णन कर देना इसलिये उचित है कि पाठक महोदय समझ सकेंगे कि भगवान् महावीर को अपने देहादि पर ममत्व बिल्कुल नहीं था । वे तो महान् तपस्वी त्यागी थे । ९. प्रथम उपसर्ग गवाले ने किया, इसने भगवान् महावीर को ध्यानावस्था में रस्सों से मारा | २. शूलपाणि यक्ष के मन्दिर में रहे तब शूलपाणि यक्ष ने अनेक उपसर्ग किये, जैसे कि -अदृश्य अट्टहास करके डराया | हाथी का रूप कर के सूड से उठाकर उछाला। सर्प का रूप बनाकर काटा। पिशाच का रूप बना कर डराया । मस्तक में, कान में, नाक में, नेत्रों में, दाँतों में, पीठ में, नखों में, सुकोमल अङ्गो में ऐसी वेदना की कि यदि कोई सामान्य पुरुष होता और उसके एक अंग में भी ऐसी पीड़ा होती तो उसकी तत्काल मृत्यु हो जाती । किन्तु प्रभु ने मेरु के समान निश्चल रहते हुए अदीन मन से सब कुछ सहन किया । ३. चण्डकौशिक सर्प ने डंक मारा परन्तु प्रभु ने शान्त चित्त से सहन किया । ४. सुदंष्ट्र नागकुसार देवता का उपसर्ग सहन किया । ५. प्रभु बन में कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े थे, लोगों ने वन में आग जलायी और वहाँ से अन्यत्र चले गये । अग्नि, सूखे घासादि hat जलती हुई प्रभु के पैरों के नीचे आ गयी, जिससे प्रभु के पैर जलने लगे, फिर भी प्रभु ने अपना ध्यान नही छोड़ा और वैसे ही ध्यानमग्न खड़े रहे । ६. कटपूतना व्यन्तर देवी ने माघ मास के दिनों में सारी रात भगवान के शरीर पर अत्यन्त शीतल जल छीटा, प्रभु विचलित नहीं हुए, अन्त में व्यन्तर देवी को ही हार माननी पड़ी । ७. संगम देवता ने एक रात्रि में प्रभु को बीस उपसर्ग किये - प्रभु पर धूलि की वर्षा की जिससे प्रभु के आँख, नाक, कानादि के स्रोत बन्द होते से प्रभु का श्वासोश्वास रुक गया तो भी प्रभु ध्यान से विचलित नहीं हुए । वज्रमुखी चीटियाँ बनाकर प्रभु के शरीर को छलनी के समान छेदन किया । वज्र चोंच वाले देश बनाकर प्रभु को बहुत पीड़ा दी । तीक्ष्ण चोंचवाली दीमक
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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