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भगवान् महावीरस्वामी का त्यागमय जीवन
कुमार वर्धमान महावीर स्वभाव से ही वैराग्यशील एवं एकान्तप्रिय थे । उनके माता-पिता तथा सारा परिवार भगवान् पार्श्वनाथ के अनुयायी थे । उन्होंने माता-पिता के आग्रह से गृहवास स्वीकार किया । इससे जब वे २८ वर्ष के हुए और उनके माता-पिता का देहांत हो गया तब उनका मन दीक्षा ( साधु होने) के लिये उत्कण्ठित हो उठा । परन्तु बड़े भाई नन्दिवर्धन तथा अन्य स्वजन वर्ग के अति आग्रह के कारण उन्होंने दो वर्षों के लिये और घर ठहरना स्वीकार कर लिया । किन्तु उसमें शर्त यह थी कि "आज से मेरे निमित्त कुछ भी आरम्भ समारम्भ न करना होगा।” re वर्धमान गृहस्थ वेष में रहते हुए भी त्यागी जीवन बिताने लगे। अपने लिये बने हुए भोजन, पेय तथा अन्य भोग सामग्री का बिलकुल उपयोग ( इस्तेमाल ) न करते हुए वे साधारण भोजनादि से अपना निर्वाह करने लगे । ब्रह्मचारियों के लिये वर्जित तेल- फुलेल, माल्य- विलेपन, और अन्य शृंगार साधनों को उन्होंने पहले ही छोड़ दिया था । गृहस्थ होकर भी वे सादगी और संयम के आदर्श बने हुए शांतिमय और त्यागमय जीवन बिताते थे ।
भगवान् महावीर स्वामी ने तीस वर्ष की आयु में सुख-वैभव तथा गृहस्थाश्रम का त्याग कर एकाकी 'जिन दीक्षा' ग्रहण की। आपने सब प्रकार के परिग्रह का सर्वथा त्याग किया । वस्त्र, पात्र, अलंकार आदि सब का त्याग कर साढ़े बारह वर्ष (१२ वर्ष, ६ महीने, १५ दिन) तक घोर तप किया। इतने समय में आपने ३४९ दिन आहार किया, वह भी दिन में मात्र एक ही बार इतनां समय तप करने के बाद छद्मस्थावस्था