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________________ [ ४ ] भगवान् महावीरस्वामी का त्यागमय जीवन कुमार वर्धमान महावीर स्वभाव से ही वैराग्यशील एवं एकान्तप्रिय थे । उनके माता-पिता तथा सारा परिवार भगवान् पार्श्वनाथ के अनुयायी थे । उन्होंने माता-पिता के आग्रह से गृहवास स्वीकार किया । इससे जब वे २८ वर्ष के हुए और उनके माता-पिता का देहांत हो गया तब उनका मन दीक्षा ( साधु होने) के लिये उत्कण्ठित हो उठा । परन्तु बड़े भाई नन्दिवर्धन तथा अन्य स्वजन वर्ग के अति आग्रह के कारण उन्होंने दो वर्षों के लिये और घर ठहरना स्वीकार कर लिया । किन्तु उसमें शर्त यह थी कि "आज से मेरे निमित्त कुछ भी आरम्भ समारम्भ न करना होगा।” re वर्धमान गृहस्थ वेष में रहते हुए भी त्यागी जीवन बिताने लगे। अपने लिये बने हुए भोजन, पेय तथा अन्य भोग सामग्री का बिलकुल उपयोग ( इस्तेमाल ) न करते हुए वे साधारण भोजनादि से अपना निर्वाह करने लगे । ब्रह्मचारियों के लिये वर्जित तेल- फुलेल, माल्य- विलेपन, और अन्य शृंगार साधनों को उन्होंने पहले ही छोड़ दिया था । गृहस्थ होकर भी वे सादगी और संयम के आदर्श बने हुए शांतिमय और त्यागमय जीवन बिताते थे । भगवान् महावीर स्वामी ने तीस वर्ष की आयु में सुख-वैभव तथा गृहस्थाश्रम का त्याग कर एकाकी 'जिन दीक्षा' ग्रहण की। आपने सब प्रकार के परिग्रह का सर्वथा त्याग किया । वस्त्र, पात्र, अलंकार आदि सब का त्याग कर साढ़े बारह वर्ष (१२ वर्ष, ६ महीने, १५ दिन) तक घोर तप किया। इतने समय में आपने ३४९ दिन आहार किया, वह भी दिन में मात्र एक ही बार इतनां समय तप करने के बाद छद्मस्थावस्था
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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