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________________ ( २६ ) heart-ars बनाने के प्रयत्न में संलग्न रहता है। सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास, वर्षा- धूप की भी परवाह न करके वह सतत ध्यान, तप तथा प्राणियों के उपकार के लिये पर्यटक बना रहता है। सब प्रकार के परिषह और उपसर्गों सहर्ष सहन करते हुए भी अपने जीवनलक्ष्य का त्याग नहीं करता । किसी सूक्ष्म से सूक्ष्म प्राणी की भी हिंसा उससे न हो जाय इसके लिये वह सदा सावधान रहता है और इस दोष से बचने के लिये वह अपने पास सदा रजोहरण' रखता है तथा सचेत कच्चा, पक्का अथवा दोष वाला ऐसा वनस्पति का आहार भी कभी ग्रहण नही करता । वस्तु के निकम्मे भाग को डालने से किसी एकेन्द्रिय जीव की भी हिंसा न हो जाय इसकी पूरी सावधानी रखकर स्थान को देखभाल कर तथा पूज-प्रमार्जन करके डालता है । इस प्रकार निर्ग्रथ श्रमण - जैन साधु एकेन्द्रिय से लेकर 'चेन्द्रिय जीव की हिंसा से बचने के लिये सदा जागरूक रहता है । १. एक ऊनादि नरम वस्तु का गुच्छा, जिससे स्थान साफ़ करने पर जीवादि की हिंसा का बचाव होता है ।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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