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संभव नही है। रात्रि को मोबन आदि में प्रस जीकों का पड़ जाना प्रायः संभव होने से हिंसा एवं मांसाहार के दोष से प्रायः बसा नहीं जा सकता। इस प्रकार सब दोषों को देखकर ही शातपुत्र भगवान् महावीर ने कहा है कि "निग्रंथ मनि रात्रि को किसी भी प्रकार से भोजन न करे ।" ___अन्नादि चारों ही प्रकार के आहार (१. अशन-वह जुराक जिससे भूख मिटे, २. पान-वह आहार जिससे प्यास आदि मिटे, ३. खाद्य-वह माहार जिससे थोड़ी तृप्ति हो, जैसे फलादि, ४. स्वाब-इलायची सुपारी आदि) का रात्रि मे सेवन नही करना चाहिये। इतना ही नहीं दूसरे दिन के लिये भी रात्रि में खाद्य सामग्री का संग्रह करना निषिद्ध है। अतः अहिंसा महाव्रत धारी श्रमण रात्रिभोजन का सर्वथा त्यागी होता है।
२. सत्य महावत-मन से सत्य सोचना, वाणी से सत्य बोलना, और काय से सत्य का आचरण करना तथा सूक्ष्म असत्य का भी प्रयोग न करना, सत्य महाव्रत है।
जैन साधु मन-वचन तथा काया से कदापि असत्य का सेवन नहीं करता। उसे मौन रहना प्रियतर प्रतीत होता है, फिर भी प्रयोजन होने पर परिमित, हितकर, मधुर और निर्दोष भाषा का ही प्रयोग करता है। बह बिना सोचे विचारे नही बोलता। हिंसा को उत्तेजन देने वाला वचन मुख से नहीं निकालता । हँसी, मजाक आदि बातो से, जिनके कारण असत्य भाषण की संभावना रहती है, उससे दूर रहता है।
३. अचौर्य महाव्रत-मुनि संसार की कोई भी वस्तु, उसके स्वामी की आज्ञा के बिना ग्रहण नहीं करता, चाहे वह शिष्यादि हो, चाहे निर्जीव घासादि हो। दाँत साफ़ करने के लिये तिनका जैसी तुच्छ वस्तु भी मालिक की आज्ञा बिना नहीं लेता।
४. ब्रह्मचर्य महावत-जैन मुनि काम वृत्ति और वासना का नियमन करके पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है। इस दुर्धर महाव्रत का पालन करने के लिये अनेक नियमों का कठोरता से पालन करना पड़ता है। उन में से कुछ इस प्रकार हैं: