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________________ भक्षण से आमिषाहार की संभावना हो अथवा बुद्धि में विकार आवे, श्रावक के लिये वर्जित हैं।" ऐसे व्यापार जिन में त्रस जीवों की हिंसा विशेष रूप से संभव हो, श्रावक के लिये वर्जित है। जैसे-वृक्षों को काट-काट कर कोयला बनाना, ठेका ले कर जंगल को उजाड़ना, हाथीदांत आदि का व्यापार करना, मदिरा जैसी मादक वस्तुओं का विक्रय करना, प्राणघातक विष बेचना, और दुराचारिणी स्त्रियों से दुराचार करवा कर द्रव्योपार्जन करना, आदि निंद्य व्यापारों का भी प्रावक त्याग कर देता है। (च) आठवां अनर्यवंडविरमण व्रत अनर्बदण्डत्याग-बिना प्रयोजन हिंसादि करना अनर्थदण्ड कहलाता है। इसका भी धावक को त्याग करना चाहिये। १. (क) मदिरा के दोष विवेकः संयमो ज्ञानं सत्यं शौचं दया क्षमा। मद्यात्प्रलीयते सर्वं तृण्या वह्निकणादिव ॥ १६ ॥ दोषाणां कारणं मद्यं, मधं कारणमापदाम् । रोगातुर इवापथ्यं तस्मान्मद्यं विवर्जयेत् ॥ १७ ॥ (ख) मांस के दोष चिखादिषति यो मांसं प्राणिप्राणापहारतः । उन्मलयत्यसौ मूल दयाख्यं धर्मशाखिनः ।। १८॥ अशनीयन् सदा मासं दयां यो हि चिकीर्षति । ज्वलति ज्वलने वल्ली, स रोपयितुमिच्छति ।। १९ ।। सद्यःसंमूर्छितानतजंतुसंतानदूषितम् । नरकाध्वनि पाथेयं, कोऽश्नीयात् पिशितं सुधीः ? ॥३३॥ नवनीत (मक्खन) के घोषअंतर्मुहर्तात्परतः सुसूक्ष्मा जंतुराशयः । यत्र मूछन्ति तन्नाद्य, नवनोतं विवेकिभिः ॥ ३४॥ (घ) मधु (शहब) के बोष अनेकजन्तुसंघात-निपातनसमुद्भवम् । जुगुप्सनीयं लालावत् कः स्वादयति माक्षिकम् ? ॥३६॥
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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