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( १४ ) जैन परम्परा के अनुसार श्रावक-श्राविका बनने की योग्यता प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित सात दुर्व्यसनों का त्याग करना आवश्यक है :
१. जुआ खेलना, २. मांसाहार, ३. मदिरापान, ४. वेश्यागमन, ५. शिकार, ६. चोरी, ७. परस्त्रीगमन अथवा परपुरुषगमन । ये सात दुर्व्यसन' हैं।
ये सातों ही दुर्व्यसन जीवन को अधःपतन की ओर ले जाते हैं। इनमें से किसी भी एक व्यसन में फंसा हुआ अभागा मनुष्य प्रायः सभी व्यसनों का शिकार बन जाता है।
इन सात व्यसनों में से नियम पूर्वक किसी भी व्यसन का सेवन न करने वाले ही श्रावक-श्राविका बनने के पात्र होते हैं।
(ख) आवक बनने के लियः
उपर्युक्त सात व्यसनों के त्याग के अतिरिक्त गृहस्थ में अन्य गुण भी होने चाहिये । जैन परिभाषा मे उन्हें मार्गानुसारी गुण कहते हैं । इन गुणों में से कुछ ये हैं:___नीति पूर्वक धनोपार्जन करे, शिष्टाचार का प्रशंसक हो, गुणवान् पुरुषों का आदर करे, मधुरभाषी हो, लज्जाशील हो, शीलवान हो, मातापिता का भक्त एवं सेवक हो, धर्मविरुद्ध, देशविरुद्ध-एवं कुलविरुद्ध कार्य न करने वाला हो, आय से अधिक व्यय न करनेवाला हो, प्रतिदिन धर्मोपदेश सुनने वाला हो, देव-गु (जिनेन्द्र प्रभु तथा निग्रंथ गु ) की भक्ति करने वाला हो, नियत समय पर परिमित सात्त्विक भोजन करने वाला, अतिथि-दीन-हीन जनों का ए साधु-संतों का यथोचित सत्कार करने
१. मज्जपसंगी, चोज्जपसंगी, मंसपसंगी, जूयपसंगी, वेसापसंगी, परदारपसंगी। (ज्ञातासूत्र अ० १८ सू० १३७)
जल-थल-खगचारिणो य पंचिदिए पसुगणे बिय-तिय-चरिदिए य विविहजीवे पियजीविए मरणदुक्खपडिकूले वराए हणंति।।
" (प्रश्नव्याकरणे प्रथम अ०) २. विपाकसूत्र-दुःखविपाक (सप्त दुर्व्यसनों का फल)