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________________ [ २ ] जैन गृहस्थों (श्रावक-श्राविकाओं) का आचार जैन गृहस्थों मैं पुरुष को श्रावक तथा स्त्री को श्राविका कहते हैं । (क) गृहस्थ धर्म की पूर्व भूमिका संघविभावन - तीर्थंकर भगवान् से जब धर्मशासन की स्थापना की तो स्वाभाविक ही था कि उसे स्थायी बौर व्यापक रूप देने के लिये वे संघ की स्थापना करते। क्योंकि संघ के बिना धर्म ठहर नही सकता । जैन संघ चार श्रेणियों में विभक्त है- १. साधु, २. साध्वी, ३. श्रावक, ४. श्राविका । इसमें साधु-साध्वी का आचार लगभग एक जैसा है और श्रावकश्राविका का आचार एकसा है । मुनि ( साधु-साध्वी) के आचार का उल्लेख आगे करेंगे । यहाँ पर Man-विका के आचार का वर्णन करते हैं, क्योंकि श्रावक-श्राविका का भी जैन शासन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। श्रावक का आचार मुनिधर्म के लिये नींव के समान है। इसी के ऊपर मुनि के आचार का भव्य प्रासाद निर्मित हुआ है । बायक पद का अधिकारी--- जैन धर्म में जैन मुनियों के लिये आवश्यक आचार-प्रणालिका निश्चित है और उस आचार का पालन करनेवाला साधक ही मुनि कहलाता है । उसी प्रकार धावक होने के लिये भी कुछ आवश्यक शर्त हैं। प्रत्येक गृहस्य भाव श्रावक नहीं कहला सकता, बल्कि विशिष्ट व्रतों को अङ्गीकार करने वाला गृहस्थ पुरुष व स्त्री ही श्रावक-श्राविका कहलाने के अधिकारी हैं।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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