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चारित्र के अभाव में सर्व कर्मजन्य उपाधि से मुक्ति रूप निर्वाण (मोक्ष) की प्राप्ति कदापि नहीं कर सकता ।
जैन श्रमणोपासकों (गृहस्थों), जैन धर्म के प्रचारक निर्बंधों (साधुओं) तथा जैनधर्मfore तीर्थंकरों का आचार कितना पवित्र था और है इस का संक्षिप्त विवेचन करना इस लिये यहाँ आवश्यक है कि आप देखेंगे ऐसे चरित्र वाला कोई भी व्यक्ति प्राण्यंग मत्स्य- मांसादि अभक्ष्य पदार्थों का कदापि भक्षण नहीं कर सकता ।