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________________ आज के गन्दे और दूषित वातावरण (जिसमें मांस-मत्स्य तथा मदिरा जैसी घृणित वस्तुओं का विश्वव्यापी प्रचार हो रहा है) में भी अक्षुण्ण रूप से निरामिषाहारी है। मात्र इतना ही नहीं परन्तु जैन तीर्थंकरों की अहिंसा की लोगों पर उस समय इतनी गहरी छाप पड़ी थी कि जो सराकादि जातियां हजारों वर्षोंसे जैन धर्म को भूल चुकी हैं वे भी आजतक कट्टर निरामिषभोजी रही हैं। श्रमण भगवान् महावीर की अहिंसा ने उस समयको सर्वसाधारण जनता पर इतना जबर्दस्त प्रभाव डाला कि उस समय के बौद्ध आदि प्राण्यंग मत्स्य-मांसादि भक्षक संप्रदायों को भी अप' सैद्धान्तिक रूप से, इच्छा से नहीं तो दबाव से अथवा लोकनिन्दा के भय से ही अहिंसा के सिद्धान्त को किसी न किसी रूप से अपनाना पड़ा। इस लिये यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि "अहिंसा शब्द का प्रधान सम्बन्ध जैनों के साथ ही है।" भारतगौरव स्वर्गवासी लोकमान्य तिलक ने तो स्पष्ट रूप से यह बात स्वीकार की है कि-"जैन धर्म की अहिंसा ने वैदिक-ब्राह्मण धर्म पर गहरी छाप डाली है। जब भगवान महावीर जैन धर्म को पुनः प्रकाश में लाये तब अहिंसा धर्म खूब ही व्यापक हुआ। आज कल यज्ञों में जो पशुहिंसा नहीं होती--प्राह्मण और हिन्दू धर्म में मांस भक्षण और मदिरापान बन्द हो गया है वह भी जैन धर्म का ही प्रताप है।" अहिंसा तो जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है, प्राण है और इसका पहला पाठ मांसाहार निषेध से ही प्रारंभ होता है। जैनधर्म की मान्यता है कि चाहे भगवान् महावीर हो या बुद्ध अथवा कोई भी महान् व्यक्ति क्यों न हो यदि वह मांसाहार करता है तो वह भगवान् पद का अधिकारी कमी नहीं हो सकता। मांसाहारी न तो स्व स्वरूप को समझ सकता है और न ही शुद्ध और सम्पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति कर सकता है, इसलिये यह अनन्त सुख का मार्ग भी नहीं खोज सकता और न ही वह उच्चतम चारित्र का पालन कर सकता है। और उच्चतम
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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