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(१०) (६) यह बात बड़े गौरव की है कि जिस जाति को जैन धर्म भूले हुए बाज तेरह सौ वर्ष हो गये हैं उनके वंशज आज तक बंगाल जैसे मांसाहारी देश में रहते हुए भी कट्टर निरामिषाहारी हैं। इस जाति में मत्स्य तथा मांस का व्यवहार सर्वथा वयं है । यहाँ तक कि बालक भी मत्स्य या मास नहीं खाते। मांसाहारी और हिंसकों के मध्य में रहते हुए भी ये लोग पूर्ण अहिंसक तथा निरामिषभोजी है।
७. कर्नल डेलटन का मत है कि:
इस जाति को यह अभिमान है कि इस में कोई भी व्यक्ति किसी फौजदारी अपराध में दंडित नहीं हुआ। और अब भी संभव है कि इन्हे यही अभिमान है कि इस ब्रिटिश राज्य में भी किसी को अब तक कोई फ़ौजदारी अपराध पर दंड नही मिला। ये वास्तव मे शांत और नियम से चलने वाले हैं। अपने आप और पड़ौसियो के साथ शाँति से रहते हैं । ये लोग बहुत प्रतिष्ठित तथा बुद्धिमान मालूम होते हैं।
(८)अनेकों जैन मन्दिर और जैन तीर्थंकरों, गणधरो, निग्रंथों, श्रावक, श्राविकाओं की मूत्तियां आज भी इस देश में सर्वत्र इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं, जो कि "सराक" लोगों के द्वारा निर्मित तथा प्रतिष्ठित कराई गयी हैं। (A. S. B. 1868)
सारांश यह है कि हजारों वर्षों से अपने मूल धर्म (जैन धर्म) को भूल जाने पर भी और अन्य मांसाहारी धर्म-संप्रदायों में मिल जाने के बाद भी इन सराकों में जैन धर्म के आचार सम्बन्धी अनेक विशेषताएँ आज भी विद्यमान हैं।
इस सारे विवेचन से यह बात स्पष्ट है कि जैन धर्म निर्यामक निम्रन्थ ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर आदि तीर्थंकरों ने अहिंसा का ऐसा अलौकिक आदर्श स्वयं अपने आचरण में लाकर विश्व के लोगों को इस पर चलने का आदेश दिया, जिसके परिणाम स्वरूप जिन्होंने उन के धर्म को स्वीकार किया ऐसा जैन संघ (साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका)