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२.मि. रसती कहते है कि
यद्यपि मानभूम के 'सराक' अब हिन्दू हैं परन्तु वे अपने को प्राचीन काल में जैन होने की बात को जानते हैं। ये पक्के शाकाहारी हैं, मात्र इतना ही नहीं परन्तु 'काटने' के शब्द को भी वे व्यवहार में नहीं लाते।
३. मि० एकूण लैंड का मत है कि
'मराक' लोग हिंसा से घृणा करते हैं। दिनको खाना अच्छा समझते हैं। सूर्योदय बिना भोजन नहीं करते। गूलर आदि कीड़े वाले फलों को भी नहीं खाते । श्री पार्श्वनाथ (जनों के तेईसवें तीर्थकर) को पूजते हैं और उन्हें अपना कुलदेवता मानते हैं । इनके गृहस्थाचार्य भी सराकों की तरह कदापि रात्रिभोजनादि नहीं करते। इनमें एक कहावत भी प्रसिद्ध है
"डोह ड्रमर (गूलर) पोढ़ो छाती ए चार नहीं खाये सराक जाति ।"-' ४. A.S.B. 1868 N/8 में लिखा है कि:
They are represented as having great scruples against taking life. They must not eat till they have seen the sun (before sunrise, and they venerate Parashvanath.
अर्थात्-वे (सराक) ऐसे लोगों के अनुयायी हैं जो जीवहत्या रूप हिंसा से अत्यन्त घृणा करते हैं और वे सूर्योदय होने से पहले कदापि नही खाते तथा वे श्री पार्श्वनाथ के पूजक हैं।
५. मि. बेगलर व कर्नल रेलटन का मत है कि:
ब्राह्मणों व उनके मानने वालों ने ईसा की सातवीं शताब्दी के बाद उन श्रावकों को अपने प्रभाव से दबा लिया। जो कुछ बचे और उनके धर्म में नहीं गये वे इन स्थानों मे दूर जाकर रहे।
१. इन सब बातों का खुलासा श्रावक के सातवें "भोगोपभोगपरिमाण व्रत" में अगले स्तम्भ में करेंगे। और बतलायेंगे कि व्रतधारी बैन धावक के लिये इन नियमों का पालन अनिवार्य होता है।