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को "सराक" के नाम से प्रसिद्ध है। सराक शब्द "सरावक-श्रावक" का अपभ्रंश होकर बना है । ये लोग कृषि, कपड़ा बुनने तथा दुकानदारी बादि का व्यवसाय करते हैं। ये लोग उन प्राचीन जैन श्रावकों के बंशज हैं जो बैन जाति के अवशेष रूप है। यह जाति आज प्रायः हिन्दू धर्म की अनुयायी हो गई है। कहीं-कहीं अभी तक ये लोग अपने आपको जैन समझते हैं। इस जाति के विषय में अनेक पाश्चात्य तथा पौर्वात्य विद्वानों ने उल्लेख किया है। जिसका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है।
१. मि० गट अपनी सेंसर्स रिपोर्ट में लिखते हैं कि:__इस बंगाल देश में एक खास तरह के लोग रहते हैं। जिनको 'सराक' कहते हैं। इनकी संख्या बहुत है। "ये लोग मूल से जैन थे", तथा इन्हीं की दंतकथाओं एवं इनके पड़ोसी भूमिजों को दंतकथाओं से मालूम होता है कि ये एक ऐसी जाति की सन्तान हैं जो भूमिजों के आने के समय से भी पहले बहुत प्राचीन काल से यहां बसी हुई है। इनके बड़ों ने पार, छर्रा, बोरा और भूमिजों आदि जातियों के पहले अनेक स्थानों पर मंदिर बनवाये थे। यह अब भी सदा से ही एक शान्तिमयी जाति है जो भूमिजों के साथ बहत मेल-जोल से रहती है। कर्नल डलटन के मतानसार में जैन हैं और ईसा पूर्व छठी शताब्दी ( Sixth Century B. C. ) से ये लोग यहां आबाद हैं। ___ यह शब्द "सराक" निःसन्देह "श्रावक" से ही निकला है, जिस का अर्थ संस्कृत में 'सुनने वाला' होता है । जनों में यह शब्द गृहस्थों के लिये जाता है जो लौकिक व्यवसाय करते हैं और जो यति या साधु से भिन्न हैं।
(मि० गेट सेंसर्स रिपोर्ट)
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१. जैनागमों में श्रावक शब्द गृहस्थ प्रतधारी जनों के लिये आया है, परन्तु बौद्धों ने श्रावक शब्द बौद्ध भिक्षुबों के लिये प्रयोग किया है। 'सराक' जो कि श्रावक शब्द का अपग्रंश है वह गृहस्थों को जाति के लिये प्रसिद्ध है। इसलिये यह जाति जैन गृहस्थ-श्रमणोपासकों का अवशेष प है इसमें सन्देह नहीं है ।