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________________ दूसरों से चलवाते है । राषि-भोजन भी नहीं करते, क्योंकि इससे प्रायः स जीवों की हिंसा होती है तथा भोजन के साथ पस जोवों के पेट में चले जाने से मांसमक्षण का दोष भी संभव है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि समस्त जैन तीर्थंकरों-भगवान महावीर मावि-ने अपने अनुयायी जैन मुनियों के लिये स्थूल से लेकर सूक्ष्म हिंसा से बचने के लिये तथा अहिंसापालन के प्रति कितना जागरूक रहने का आदेश दिया है। जिसके फलस्वरूप आज तक जैन साधु-साध्वी संघ स्थल से लेकर सूक्ष्मसे सूक्ष्म अहिंसा का पालन करने में सदा जागरूक चला आ रहा है। यह बात आज भी संसार प्रत्यक्ष देख रहा है। प्राणी मात्र के रक्षक सर्वज्ञ भगवान महावीर जीव का स्वरूप मानते थे। उन्होंने बतलाया कि मानव जब तक इतनी सूक्ष्म अहिंसा का पालन नहीं करता तब तक बह निर्वाण (मोक्ष) प्राप्ति में समर्थ नहीं हो सकता। शाश्वत सुख प्राप्त करने का अहिंसा के पूर्ण पालन को छोड़कर अन्य साधन हो ही नहीं सकता। इसी वजह से वीतराग-सर्वश भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट आगमों का प्रधान विषय अहिंसा ही है। जो धर्मनिर्यामक तीर्थकर यहां तक सूक्ष्म रूप से जीवों की हिंसा से स्वयं बचते हैं और दूसरों के लिये बचने का विधान करते हैं उन पर मांसभक्षण का आरोप लगाना कहाँ तक उचित है ? इसके लिये सुज पाठक स्वयं विचार कर सकते हैं। ___ अहिंसा के विषय में करुणासागर वीतराग सर्व भगवान् महावीर ने यह स्वयं फ़रमाया है : "सचे पाणा पियाउमा, सुहसाया दुहपरिकूला, मप्पियवहा पियजीविणो जीविउकामा पातिवाएम्ज कंवर्ण" (आचारांग ०१/०२ ३०३) ___ अर्थात्-सब प्राणियों को आयुष्य प्रिय है, सब सुख के अभिलाषी हैं, वुःख सब को प्रतिकूल है, वध सबको अप्रिय है, जीवन सभी को यित्र है, सभी जीने की इच्छा रखते हैं, स लिये किसी को मारना या कष्ट देना नहीं चाहिये।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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