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________________ ( ४ ) विश्वशांति की आवाज प्रभु श्री पार्श्वनाथ और प्रभु श्री महावीर के अनुयायियों के अतिरिक्त दूसरा कौन कर सकता है ? राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी लिखते हैं कि "महावीर स्वामी का नाम किसी भी सिद्धान्त के लिये यदि पूजा जाता है तो वह अहिंसा ही है। प्रत्येक धर्म की महत्ता इसी बात में है कि उस धर्म में अहिंसा का तत्त्व कितने प्रमाण में है । और इस तत्व को यदि किसी ने अधिक-से-अधिक विकसित किया है तो वह भगवान् महावीर ही थे।" भगवान् महावीर हो अथवा कोई भी जैन तीर्थंकर हो, न तो वे स्वय ही मदिरा -मांसादि का प्रयोग करते हैं और न ही उनके अनुयायी यहाँ तक कि जैन धर्म पर विश्वास रखने वाले गृहस्थ भी, जो किसी तरह का व्रत नियम या प्रतिज्ञा को ग्रहण नहीं करते अर्थात् श्रावक के व्रतों को भी ग्रहण नही करते, मांस-मदिरादि अभक्ष्य पदार्थों से हमेशा दूर रहते आ रहे हैं । भगवान् महावीर आदि जैन तीर्थंकरों के मांसाहार निरोष का सविशेष परिचायक सबूत ( प्रमाण ) इससे अधिक क्या हो सकता है निग्रंथ श्रमण- जैन साधु तो छः काया के जीवों की हिंसा से बचते हैं । वे सकाय के जीवों का आरंभ (हिंसा) नहीं करते, सचित्त फल, फूल, सब्जी आदि का भक्षण नही करते। अग्निकाय का आरम्भ नही करते। सचित्त, जल का उपयोग नही करते । बैठना या खड़े होना हो तो रजोहरण ( ऊनादि नरम वस्तु का एक गुच्छा, जिससे स्थान साफ करने पर जीवादि की हिंसा का बचाव होता है) से स्थानादि का प्रमार्जन ( साफ़-सूफ़ ) करके बैठते, उठते, चलते, सोते हैं, ताकि किसी सूक्ष्म जीव की भी हिंसा न हो जाये । पृथ्वी को न स्वयं खोदते हैं न दूसरों से खुदवाते हैं। वायुकाय ( बाबु के जीवों) की हिंसा से बचने के लिए न खा चलाते हैं, न १. भगवान् महावीर तथा उनके अनुयायी निर्बंथ श्रमण एवं श्रमणोपासकों के आचार सम्बन्धी विशेष स्पष्टीकरण अगले स्तम्भों में करेंगे।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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