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________________ ( १५९ ) होसार जैनागमों का परस्पर मिलकर वाचन करके उन को सुरक्षित रखते मआये। ईसा की प्रथम शताब्दी में बच्चस्वामी हुए तब तक ग्यारह बंग तथा पूर्वो का शान कंठस्थ सुरक्षित रहा। इसके बाद काल के स्वभाव से बुद्धि मंद हो जाने के कारण से निर्ग्रन्थ श्रमण आमम पाठ भूलने लगे। भगवान् महावीर स्वामी के चौबीसवें पाट पर श्री सकंदिलाचार्य हुए, उस समय बारह वर्षीय दुष्काल पड़ने के कारण जैन श्रमणों को अंग-उपांग भी पूर्ण रूप से याद नहीं रहे। सुभिक्ष होने पर मथुरा में सकंदिलाचार्य की अध्यक्षता में जैन श्रमणों का फिर एक वृहत्सम्मेलन हुआ। उस समय निर्गन्ध श्रमण संघ ने एकत्रित होकर जिस साधु को जिस शास्त्र का जितना पाठ कंठस्थ याद था वह एकत्र करके जैनागमों को पुनः सकलित किया गया । इसलिये इसे माथुरी वाचना कहते हैं । यह समय लगमम ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी का ठहरता है। इस प्रकार बोच-बीच में एक-दो शताब्दियों के बाद निग्रंथ श्रमण अपना सम्मेलन करके जैनागमों के अपने कंठस्थ ज्ञान का पुनर्वाचन करके उन्हे व्यवस्थित रखते आये । अन्त में काल के स्वभाव से जब स्मरणशक्ति में अधिक कमी आने लगी और सूत्र पाठ विस्मरण होते चले गये । तब ईसा की पांचवीं शताब्दी में (भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण के ९८० वर्ष बाद) बलभी नगरी में समस्त निग्रंय श्रमणों का एक वृहस्सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन के अध्यक्ष जैनाचार्य देवद्धिगणि क्षमाश्रमण थे। यह उस समय के युगप्रधान और मुख्याचार्य थे । सम्मेलन में जिस-जिस साधु को आगमों के जो-जो पाठ कंठस्थ याद थे उनका वाचन हुआ । वाचना के पश्चात् यह मालूम हुआ कि चौदह पूर्व पूर्ण भूले जा चुके हैं। बाकी के ग्यारह अं के भो कुछ भाग विस्मरण हो चुके हैं । इस निर्ग्रन्थश्रमणसंभ के सामने विकट समस्या उपस्थित थी । यदि इस समय बचे हुए इस कंठस्थ आगम ज्ञान को लिपिबद्ध न किया गया तो कालांतर मे यह भी धूल जाने से भगवान् महावीर की द्वादशांगी वाणी का पूर्ण रूप से विच्छेद हो जायगा और यदि लिखा जाता है तो इस काम कोनिषत्रमणसंध
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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