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तथा " अध्यापक धर्मानन्द कौशाम्बी एवं श्रीगोपालदास भाई पटेल ने इस भगवती सूत्र के पाठ के अतिरिक्त जैनागमो दशवैकालिक तथा आचाराग के जिन सूत्रपाठी का भी ऐसा ही अनुचित अर्थ किया है उनके स्पष्टीकरण के लिये भी इस प्रस्तावना में जर्मन विद्वान् डाक्टर हर्मन जैकोबी ने अपनी इस भूल को जो सरल हृदय से स्वीकार कर उसके प्रतिकार रूप में अपना स्पष्ट मत प्रदर्शित करनेवाला स्पष्टीकरण किया है, वह नोट उद्धृत कर दिया है तथा इसके साथ ही हमने इस निबंध के पृष्ठ १५४ से १५७ की टिप्पणी में उन सूत्रपाठो में दिये गये विवादास्पद शब्दो के वनस्पतिपरक अर्थ भी दे दिये है जिनसे पाठकों को यह भी स्पष्ट हो जाय कि इनका अर्थ वनस्पतिपरक करना ही उचित है ।
क्योकि हमारे इस निबन्ध का मुख्य विषय "भगवती सूत्र” के विवादास्पद सूत्रपाठ के अर्थ का स्पष्टीकरण है इसलिये दूसरे आगमो के विवादास्पद सूत्रपाठी के शब्दो का वनस्पतिपरक अर्थ- मात्र देना ही इसलिये पर्याप्त समझा है कि समझदार के लिये इशारा मात्र ही काफी है । आशा है कि इससे पाठक महानुभावो को यह स्थिति सरलतापूर्वक अवश्य समझ में आ सकेगी जिज्ञेषु कि बहुना ।
इस निबन्ध पर कोई लम्बी-चौड़ी प्रस्तावना लिखकर हम आपका और अपना समय खर्च करना उचित नही समझते । पाठक महानुभावो से मात्र इतना ही अनुरोध है कि आप इस निबन्ध को स्थित प्रज्ञता के साथ पढ़े और निर्णय करे कि इस कार्य मे हमें कहा तक सफलता प्राप्त हुई है । एवं इसमे यदि कोई त्रुटि दृष्टिगोचर हो तो हमे सूचित करने की कृपा करे ताकि अगले संस्करण मे इसे परिमार्जित कर दिया जाय ।
जैनों तथा जैन धर्म के लिये "अध्यापक धर्मानन्द कौशाम्बी कृत "भगवान् बुद्ध” नामक पुस्तक एक लांछन रूप है । जब तक निर्ग्रथ जैन श्रमणों तथा महाश्रमण निग्गठ नायपुत्त भगवान् श्री महावीर स्वामी पर लगाये गये प्राण्यग मासाहार के दोषवाले पृष्ठ इस पुस्तक में से निकाले नही जाते, तब तक जैन समाज तथा अहिसा मे निष्ठा रखनेवाले जन