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अतः वे अपने जीवन में किसी भी हालत मे अपने लिये अपवाद मार्ग का आश्रय नहीं लेते। इसका आशय यह है कि वे अपने जीवन मे हिसा आदि जिसमें हो ऐसा कोई कार्य नहीं करते। अत: प्राण्यग मासादि को ग्रहण करना उनके लिये असभव ही है इसलिये जैनो के पांचवें आगम “भगवती सूत्र" के विवादास्पद सूत्रपाठ के शब्दो का प्राण्यग मांसपरक अर्थ करना नितात अनुचित और गलत है तथा श्रमण भगवान् महावीर को जो रोग था जिसके लिये उन्होने जिम औषध का सेवन किया था यदि वह प्राण्यग मास होता तो वह प्राणघातक सिद्ध होता। इसलिए उन्होने वनस्पतियो से तैयार हुई औषधि का सेवन कर आरोग्य लाभ किया। वह औषध :____ "लवंग से सस्कारित बिजोरा ( जम्बीर ) फल का पाक" ओषध रूप में ग्रहण किया था । क्योंकि इस औषध में रक्त-पित्त आदि रोगों को शमन करने के पूर्ण गुण विद्यमान है।
श्वेताबर जैनो टाग मान्य इस सूत्रपाठ का अर्थ वनस्पतिपरक औषध म्प में मुन दिगम्बर जैन विद्वानों ने भी स्वीकार किया है और इस औषध-दान की भूरि-भूरि प्रशमा की है। मात्र इतना ही नहीं, अपितु यह भी स्वीकार किया है कि भगवान् को इस औषध दान देने के प्रभाव से रेवती श्राविका ने तीर्थकर नाम-कर्म का उपार्जन किया, इसलिए औषध दान भी देना चाहिये। इससे स्पप्ट है कि सूज्ञ दिगम्बर जैन विद्वानो को भी इस औषध के वनम्पतिपरक अर्थ मे कोई मतभेद नही है। देग्पे इसी निबन्ध का पृष्ठ ७८। ___अधिक क्या कह ग़लत तथा भ्रान्तिपूर्ण ऐमा अनुचित प्रचार कर अति प्राचीनकाल से चले आये जैन धर्म के पवित्र और सत्य सिद्धान्तो को तोड़-मोडकर रखने से ऐसे पवित्र सत्सिद्धान्तो से अज्ञान तथा द्वेषियो को मिथ्या प्रचार करने का मौका मिलता है। अत. कोई विद्वान् यदि किसी ग़लतफहमी का शिकार हो भी गया है तो उसे इस बात को सत्य रूप मे जानकर अपनी भूल के लिये प्रतिवाद तथा पश्चात्ताप करना ही उसकी सच्ची विद्वत्ता की कसौटी है।