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कि जम्बीर फल का गूदा वायु कर्ता है। और वायु इस रोग में हानिकारक है । लवंग में वायु को शमन करने का गुण विद्यमान है । मात्र इतना ही नहीं किन्तु इस रोग के अनेक लक्षणों का निदान भी है।
अतः “मज्जारकडए” शब्द का अर्थ हुआ कि "विरालिका " नाम की. वनस्पति से संस्कारित किया हुआ ।
अब “मज्जारकडए, कुक्कुडमंसए" शब्दों का नीचे लिखा अर्थ स्पष्ट हो जाता है
"वायु', रक्तपित्त, पेचिश, अतिसार, दाह, पित्तज्वर आदि रोगों को शांत करने के लिये, वरालक ( लवंग ) नामक वनस्पति से संस्कारित बीजोरे ( जम्बीर) फल के गूदे का पाक (मुरब्बा ) ।
(१२) भगवतीसूत्र के विवादास्पद सूत्रपाठ का वास्तविक अर्थ :--
भगवती सूत्र का मूल पाठ :--
तं गच्छह णं तुमं सीहा ! मॅढियगामं नगरं रेवतीए गाहावतिणीए गिहे, तत्य णं रेवतीए गाहावइणीए मम अट्ठाए दुवे कवोयसरीरा उareefsया तेहि नो अट्ठो, अस्थि से अन्न पारियासिए मज्जारकडए कुक्कुडमंस तमाहराहि, एएणं अट्ठो ।
इस उपर्युक्त सूत्रपाठ का वास्तविक स्पष्टार्थ यह है :
" (श्रमण भगवान् महावीर ने अपने शिष्य सिंह मुनि से कहा ) गृहपति की भार्या रेवती
हे सिंह ! तुम मेंढक ग्राम नगर में ( श्राविका ) के घर जाओ। उसने मेरे लिये
दो छोटे कुष्माण्ड े (पेठा)
१- भगवान् महावीर को तीन प्रकार के रक्तपित्त रोगों में से अधोरक्तपित्त रोग था । यह रोग वायु प्रकोप से पित्त विकृत होकर होता है । अत: वायु को शमन करने से रक्तपित्त विकार दूर होता है।
२ - यद्यपि इस वनस्पतिपरक औषध में रोग को शमन करने के गुण मौजूद थे तो भी जैन निर्ग्रन्थ श्रमण के निमित्त तैयार किए हुए होने से निर्ग्रन्थ श्रमण उसे ग्रहण नही कर सकते थे, क्योंकि जैन श्रमण के निमित्त