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फल पका कर तैयार किये हैं उनको तो आवश्यकता नहीं है (आषाकर्मी
ष युक्त होने से) 1 पर उसके यहां कुछ दिन पहले मार्जार (लवंग) नामक वनस्पति से सस्कारित (भावना दिये हुए) बीजोरे (जम्बोर) फल के गूदे से तैयार किया हुआ औषधीय पाक (मुरब्बा) पड़ा हुआ है (जो कि उसने अपने घर के लिये बना कर तैयार करके रखा है) उस की आवश्यकता है। उसे ले आओ।"
यही अर्थ प्राचीन टीकाकारों तथा चर्णिकारों ने किया है, जो कि उपर्य क्त विवेचन से मर्वथा ठीक प्रमाणित हो जाता है। अतः
(१) अध्यापक धर्मानन्द कोसाम्बी इस सूत्रपाठ का अर्थ किया गया है कि:
उस समय महावीर स्वामी ने सिंह नामक अपने शिष्य से कहा"तुम मेढिग गाव में रेवती नामक स्त्री के पास जाओ। उस ने मेरे लिए दो कबूतर पका कर रखे हैं। वे मुझे नहीं चाहिये । तुम उससे कहना-- कल बिल्ली द्वारा मारी गयी मुर्गी का मास तुमने बनाया है, उसे दे दो।'
पाठक ममझ गये होंगे कि कोसाम्बी जी द्वारा म सूत्र पाठ का किया गया अर्थ कितना असंगत, अघटित, अनुचित और भ्रान्तिपूर्ण है। बिल्ली द्वारा मारी गयी मुर्गी ऐसी अस्पृश्य तथा घृणित वस्तु को रेवती जैसी बारह व्रत धारिणी उत्कृष्ट श्राविका अपने घर लाकर और उसे पका कर तैयार करे तथा रक्तपित्त, दाह रोग की शान्ति के लिये ऐसी वस्तु का प्रयोग उचित मान लिया जावे, ये सब मान्यताएं अप्रासंगिक, वास्तविकता से दूर तथा कपोलकल्पित जचती है।
(२) तथा मंसए और कडए शब्दों का पुल्लिग प्रयोग भी प्राण्यंग बनाया हुआ निर्ग्रन्थ श्रमणों को लेने के लिये भगवान महावीर स्वामी ने मना किया है (सोमिल ब्राह्मण तथा भगवान् महावीर स्वामी के सम्वाद से हमने इस बात को स्पष्ट ज्ञात किया है) ऐसी अवस्था में महा श्रमण भगवान् महावीर स्वयं भी इसे ग्रहण नहीं कर सकते थे, क्योंकि कूष्माण्ड पाक उन के लिये बनाया गया था ।