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________________ हानिकारक है। फिर वह पदार्थ चाहे वनस्पतिपरक हो चाहे मांसपरक । तुलना कीजिए : बादाम वनस्पति है । उसकी मज्जा, (गिरी) के गुण-दोष भी मुर्गे के मांस की तुलना करते हैं इसलिए ऐसे खाद्य भी इस रोग में हानिकारक हैं। इसलिये लेने वयं हैं । (ग) “वातावमज्जा मधुरा वृष्या तिक्ताऽनिलाहा । स्निग्योष्णा कफन्नेष्टा, रक्तपित्तविकारिणाम् ॥१२५।। (भावप्रकाश निघण्टु) अर्थ-बादाम की मज्जा (गिरी) मीठी, पुष्टिकारक, वात का नाश करने वाली. गुरु अम्ल, शुक्रल, स्निग्ध, उष्णवीर्य और कफ करने वाली होती है । इसका सेवन रक्तपित्त के रोगियों को हानिकारक है। इस उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मुर्गे का मांस उष्णादि गण वाला होने से रक्तपित्त रोग, दाहज्वर, पित्तज्वर, अतिसार तथा पेचिश आदि रोगों की शांति के लिये कदापि उपयुक्त नहीं हो सकता है। हम लिख आये हैं कि 'मार्जार' के (१) हिंगोट का वक्ष,(२) अगस्त्य का वृक्ष, (३) अगस्ति की शिम्बा, (४) लवंग आदि अनेक अर्थ होते हैं। इन हिंगोट (इंगुदी), अगस्त्य और अगस्त्य की शिम्बा इस रोग को शमन करने के लिये उपयोगी है, क्योंकि ये त्रिदोष नाशक हैं। वाय को शमन करने का भी इन में गुण हैं । किन्तु 'लवंग' में वायु त्रिदोष नाशक गुण होने के साथ-साथ अनेक ऐसे विशिष्ट गुण भी विद्यमान हैं, जो इस रोग में अत्यन्त उपयोगी हैं तथा विवादास्पद सूत्रपाठ की टीका में श्री अभयदेवसूरि ने लिखा है "मार्जारो विरालिकाभिषानो वनस्पतिविशेषस्तेन कृतं भावितम्॥ __अर्थात-वरालक नाम की औषधि विशेष से भावना दी (संस्कारित की) हुई। सो “वरालक" नाम की औषधि निघण्ट्रकारों ने लवंग को माना है। लवंग के गुणों का वर्णन हम पहले लिख चुके हैं। लवंग का पुट देना तथा संस्कारित करना जम्बीर फल के गूदे के साथ इसलिये आवश्यक है
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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