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( १४२ )
२ - शाल्मली = सेमल वृक्ष
३ - मातुरुंग = बीजोरा (जम्बीर)
४ - मुर्गा
(१) यहां "कक्कुट" का पहला वर्थ - 'सुनिषण्णक' नामक शाक भाजी है । यह शाक इस रोग में लाभदायक है अवश्य । यदि यहाँ पर इस शाक की औषधि लेना मान लें तो यहां पर " मज्जार" का अर्थ 'खटाश' लेना चाहिये । क्योंकि 'खटाश' डाल कर भाजी का शाक बनाया जाता है | भाजी का शाक 'दही' डालकर खट्टा करने का रिवाज सब जानते हैं । अर्थात् खटाश की जगह 'दही' लेने से दस्तों की तथा पेचिश की बीमारी में लाभदायक है अवश्य, परन्तु भगवान महावीर के रोग के लिये हानिकारक थी। क्योंकि भगवान् को पेचिस तथा दस्तों के साथ दाह और पित्तज्वर भी था। ज्वर में दही हानिकारक है । तथा दूसरी बात यह है कि भगवतीसूत्र में भगवान् महावीर ने सिंह मुनि से इस औषधि के लिये कहा था कि "पहले से तैयार करके जो औषध रखी है उसे लाना" । मो दही की खटाश डाल कर बनाया हुआ शाक अधिक दिनों तक रख देने से बिगड़ जाता है और खाने लायक नहीं रहता । एवं इस कुक्कुट शब्द के साथ 'मसए' शब्द है । मंसए शब्द का अर्थ है गूदा परन्तु शाक का गूदा नहीं होता । इसलिये यह शब्द शाक भाजी के अर्थ में घटित नहीं हो सकता । इससे फलित होता है कि यह औषध भगवान् महावीर ने नही ली ।
(२) दूसरा अर्थ है - 'शाल्मली' अर्थात् सेमल का वृक्ष होता है । इस वृक्ष का फल होता है तथा इसमें गूदा भी होता है । परन्तु इसका गूदा गर्म होने से इस रोग में लाभदायक नही है। अतः यह अर्थ भी यहां घटित नही हो सकता ।
(३) तीसरा अर्थ "बीजोरा फल" है। बीजोरा कई प्रकार का होता है । जैसे गलगल, चिकोतरा, संगतरा, मीठा, जम्बीर, किब फल इत्यादि । यहाँ पर बीजोरे से "जम्बीर फल" अभीष्ट है, क्योंकि अन्य बीजोरों की अपेक्षा इस रोग के लिये जम्बीर- बीजोरे का पका हुआ
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