SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४१ ) इतने विवेचन के बाद "कुक्कुट" शब्द के नीचे लिखे अर्थों वाले पदार्थों पर पुनः विचार करते हैं : (१) कुक्कुट-सुनिषण्णक शाक (भावप्रकाश) (२) कुक्कुट-मधुकुक्कुटी-जम्बीर फल (वैद्यक शब्दसिन्धु जैनागम भगवतीसूत्र) (३) कुक्कुट-शाल्मली-सेमल वृक्ष (वैद्यक शब्दसिन्धु, भाव प्रकाश निघण्टु) (४) कुक्कुट-मुर्गा, बत्तक मुर्गा (५) कुक्कुट मांस-मुर्गे का मांस यहां पर हमने मार्जार तथा कुक्कुट शब्दों के वनस्पतिपरक तथा मांसपरक पदार्थों के गुण-दोषों का वर्णन कर दिया है। अब हमने यहाँ पर यह निर्णय करना है कि विवादास्पद सूत्रपाठ में वणित भगवान महावीर ने अपने रोग के शमनार्थ इनमें से कौनसी औषध ग्रहण की थी। इनमें से प्राणिअंग मांस लाभदायक हो सकता था अथवा वनस्पति अंग मांस (गूदा) । यदि वनस्पतिपरक वस्तु लाभदायक थी तो कौनसी वस्तु औषध रूप में ग्रहण की गई थी। कक्कुट' =१-सुनिषण्णक नाम चारपत्तियों वाला शाक । १-कुक्कुट तथा इसके पर्यायवाची शब्दों के अर्थ(क) कुक्कटसुनिषण्णक, विषण्णक. चौपत्तियाभाजी । (निघण्टशेष, कौटिलीय अर्थशास्त्र) शाल्मली वृक्ष (वैद्यक शब्दसिन्धु) बीजोरा (भगवतीसूत्र टीका) (कोषंड, करंड, सांवरी (निघण्टु रत्नाकर) घास का उल्का, आग की चिंगारी, शूद्र और निषाद की वर्णसंकर प्रजा (वाच०)। (ख) कुक्कुटी-कुक्कुटी, पूरणी, रक्तकुसुमा, पणवल्ली (हेम निघण्टुसंग्रह) (ग) मधुकुक्कुटी-मातुलुंगे, जम्बीर (वैद्यक शब्दसिन्धु)
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy