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तन्मांस- गर्भ (गूवा)
बृंहणं शीतलं गुरुं रक्तपित्तजितञ्च । (च० द० पि० ज्व० चि०) अर्थ - जम्बीर फल का गूदा -- शीतल, गुरु, रक्तपित्त को नाश करने वाला है ।
आर्यभिषक् - - वनौषधि गुणादर्श ( पृ० ४१२) गुजराती ग्रंथ में मधुकुक्कुटी ( जम्बीर) फल के गूदे के गुणों का इस प्रकार वर्णन है
"मधुर, ग्राहक, कड़वा, शीतल, वातकर, तुरा, पुष्टिकारक तथा बलकारक है । कफ, रक्तपित्त विकार तथा प्रदर को नाश करता है ।"
सारांश यह है कि जम्बीर जाति के बोजोरे का कच्चा तथा अधपका फल रक्तपित्त रोग में अत्यन्त हानिकारक है एवं इस का पका फल रक्तपित्त, दाहज्वर, पित्तज्वर आदि रोगों में लाभदायक है ।
पके मीठे फल का गूदा तो इस रोग में अत्यन्त लाभदायक है । हमने उपर्युक्त तीन प्रकार के बोजोरा फलों के गुण-दोषों का वर्णन किया है।
(१) किब जाति का बीजोरा वात-पित्तशामक होने से इस रोग में लाभदायक नहीं है । (२) चिकोतरा जाति का बीजोरा इस रोग में लाभदायक है तो सही परन्तु इसका दूसरा नाम मधुकर्कटी होने से
कुक्कुटी का पर्यायवाची नहीं है, क्योंकि यदि दोनों का मधु विशेषण हटा दिया जावे तो कर्कटी एवं कुक्कुटी शब्द रह जाते हैं । यदि इन दोनों शब्दों का मांसपरक अर्थ किया जावे तो प्रथम का अर्थ केकड़ा, जो कि जल में रहने वाला एक प्राणी है, तथा कुक्कुटी का अर्थ मुर्गी होता है । इसके पुल्लिंग 'कुक्कुट' का अर्थ मुर्गा होता है। दोनों का भिन्न अर्थ होने से यही मानना ठीक है कि - "भगवतीसूत्र के विवादास्पद पाठ" में जो "कुक्कुड (कुक्कुटो)" शब्द आया है उससे मधुकुक्कुटी अर्थात् जम्बीर फल अर्थं लेना ही उचित है । ( ३ ) मधुकुक्कुटी - जम्बीर जाति बीजोरे का मीठा पका फल तथा इस का गूदा रक्तपित्त मे सब जाति के बीजोरों से अधिक तथा अत्यन्त लाभदायक है ।