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________________ ( १३९ ) (३) बीजोरा-मधुकुक्कुटी (जम्बीर) फलमधुकुमकुटिका, मयुक्कुटी (स्त्रीलिंग) मातुलङ्ग यो जम्बीर. (बंधक शब्दसिन्धु) मधुकुरकुटिका शीता श्लेष्मला अप्रसादिनी। सच्या स्वादुर्गरः स्निग्धा वात-पित्तविनाशिनी॥ तत् फलं--सच फलं बालं बात-पित्त-कफ-रक्तकरम् । मध्यं फलं-ताशमेव । पक्वं कलं--वर्गकर हचं पुष्टिकरं बलकरं शूलहरं । अजीर्णनाशनं विबन्धं वातपित्तश्वासाग्निमांबहर कासारोचकशोफघ्नञ्च ॥ (वैद्यक शासुिन्ष) पक्वं तत् मधुरं कफदमनं रक्त-पित्तदोषध्नं वर्ण्यम् । वीर्यवर्षनं रुचिकृत् पुष्टिकृत् तर्पणञ्च॥ (राजनिघण्टु तथा वैद्यक शमसिन्ध) अर्थ-मधुकुक्कुटी (जम्बीर) शीतल, श्लेष्म करने वाला, रोचक, स्वादिष्ट, गुरु, स्निग्ध, वात-पित्त को नाश करने वाला है। जम्बीर फल-कच्चा फल वात-पित्त-कफ तथा रक्त के दोषों को उत्पन्न करने वाला है । अधपका फल भी कच्चे फल के समान दोषों को करने वाला है। तथा इसका पका फल सुन्दरता बढ़ाने वाला, पुष्टिकर, बलकर शूल की पीड़ा का शामक, अजीर्णनाशक, दस्तों को रोकने वाला, वात-पित्त, श्वास, अग्निमांद्य को दूर करने वाला, खांसी, अरुचि, सूजन को नाश करने वाला है। तथा पका हुआ मीठा फल कफ का दमन करने वाला, रक्त-पित्त के दोषों को नाश करने वाला, वर्ण को निखारने वाला, वीर्य को बढ़ाने वाला, रुचिकर, पुष्टिकर तर्पण करने वाला है।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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