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( १३८ ) बीजोर फल को अनेक जातियों मे से कुछ भेदों में से गुण दोषों का वर्णन करते हैं :(१) बीजोरा (किब) फलश्वासकासाश्रुचिहरं तमाघ्नं कण्डशोषनम् ।। १४८ ॥
लध्वम्लं वोपनं हृचं मातुलङ्गमुदाहृतम् । त्वक सिक्ता दुर्जरा तस्य वातकृमिकफापहा ।। १४९॥ स्वादु शीतं गुरु स्निग्धं मांसमारुतपित्तजित् ॥१५० ।।
(सुश्रुत संहिता) अर्थ-किब जाति का बीजोरा फल---तष्णाशामक, कण्ठशोधक श्वास, खाँसी, अरुचि को मिटाने वाला, लघु, दीपक और पाचक है। ___ त्वक् (छिलका) तिक्त, दुर्जर, वात, कृमि तथा कफ को शमन करने वाली है।
मांस (गदा)-बात-पित्त को नाश करने वाला है। (२) बीजोरा--मधुकर्कटो (चिकोतरा) फल--- बीजपुरो मातुलंगो हचक: फलपूरकः । बोजपूरफलं स्वादु, रसेऽम्लं बीपनं लधु ॥ १३१ ॥ रक्तपित्तहरं कण्ठजिह्वाहृदयशोषनम् । श्वासकासाऽरुचिहरं हृद्यं तृष्णाहरं स्मृतम् ।। १३२ ॥ बीजपूरोऽपरः प्रोक्तो मधुरो मधुकर्कटी ॥ मधुकर्कटिका स्वाद्वी रोचनी शीतला गुरुः ॥१३३ ॥
(भावप्रकाश) अर्थ--चिकोतरा जाति का बोजोरा फल-रक्तपित्तनाशक है, कंठजिह्वा-हृदय शोधक है, वास-काम तथा अरुचि का दमन करता है तथा तृष्णा हर है । इस बीजोरे को दूसरे लोग मधुर मधुकर्कटी अथवा मधुकर्कटिका भी कहते है।