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( ४ - समुद्रफेन) समुद्रफेनः फेनश्च डिण्डिरोऽब्धि कफस्तथा । (शालिग्राम निघण्टु हरीतक्यादि वर्ग )
(५ - मुल्हठी) मधुयष्टिर्यष्टिमधुर्यष्ट्याह्वा क्लीतका स्मृता । मधुकं यष्टिमधुकं यष्टिका मधुयष्टिका ॥ ( ६ - काकडशिंगी) कर्कटश गिका शृंगी कुलिङ्गी कासनाशिनी । महाघोषा च चक्राङ्गी कर्कटी वनमूर्द्धजा || ( ७ - भांग ) शक्राशन तु विजया त्रैलोक्यविजया जया । (शालिग्राम निघण्टु अष्टवर्ग )
(८ - अरणी) अग्निमन्धो हविर्मन्यः कणिका गिरिकणिका । जया जयन्ती तर्कारी नादेयी वैजयन्तिका ॥
(९ - शतावरी) शतमूली महाशीता भीरुपत्री शतावरी । महाशतावरी त्वन्या शतवीर्य्या महोदरी ॥
( शालिग्राम निघण्ट् गुडूच्यादि वर्ग )
(१० - द्राक्षा) द्राक्षा मधुरसा स्वाद्वी कृष्णा चारुफला रसा । मृद्वीका गोस्तनी चैव यक्ष्मघ्नी तापसप्रिया ||
( ११ - पीलु) पीलु शीतसहा स्रंसी घानी गुडफलस्तथा । विरेचनफलः शाखी श्यामः करभवल्लभः ॥ अन्यश्चैव बृहत्पीलु -महापीलुर्महाफलः । राजपील - महावृक्ष: मधुपीलुः षडाह्वयः ॥
(१२- ताड़) तालस्तु लेख्यपत्रः स्वात् तृणराजो महोन्नतः । श्रीतालो मधुतालश्च लक्ष्मीताल मृदुच्छदः ॥ (शालिग्राम निघण्टु फलवग )
उपर्युक्त १२ उद्धरणों से स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि विशेषण रहित, तथा विशेषण सहित नाम चिकित्साशास्त्र में पर्यायवाची होने से समानार्थक है । अतः मधुकुक्कुटी, मधुकुक्कुटिका तथा कुक्कुटी भी पर्यायवाची शब्द होने से समानार्थक है इसमे सन्देह को किंचिन्मात्र भी स्थान नहीं है । यथा श्लोक न० ५ मे मुल्हठी के लिये 'मधुयष्टि शब्द आया है बौर यष्टि शब्द भी आया है। यहाँ 'मधु' विशेषण का छोड़ कर अकेले ' यष्टि' शब्द का भी मुल्हठी अर्थ ही लिया है ।