________________
( १३५ )
इसी प्रकार अन्य निघण्टुकार भी सुनिषण्णक के गुणों का ऐसा ही वर्णन करते हैं ।
(३) मधुकुक्कुटी' (मातुलुंग वृझे जम्बीरभेदे) फल के गुणदोषयहाँ पर मधुकुक्कुटी शब्द का अर्थ जम्बीर फल लिया है। जम्बीर फल बीजो का एक भेद है। बीजोरा संगतरे (संत्र ) की जाति के अनेक प्रकार के फल होते हैं। बीजोरे की नामावली अमरकोश में इस प्रकार दी है :
मातुलो मदनश्चास्यफले मातुलपुत्रकः । फलपूरो बोजपूरी हवको मातुलुङ्गके ॥ समीरणो मरुत्रकः प्रम पुष्पः फणिज्जकः ।
जम्बोरोऽप्यथ पर्णासे कठिञ्जरकुठरबौ || (को २ वनो०)
१. विवादास्पद मूल पाठ में 'कुक्कुट' शब्द आया है। बीजोरे के लिये मधुकुक्कुटी अथवा मधुकुक्कुटिका शब्द का प्रयोग हुआ है । सो यहाँ पर कुक्कुट शब्द से बीजोरा शब्द क्यों स्वीकार किया है, इसे यहाँ पर स्पष्ट करने की आवश्यकता है:
'कुक्कुट' शब्द का स्त्री लिंग 'कुक्कुटी' होता है तथा इस कुक्कुटी शब्द पर से 'मकुक्कुटो' शब्द बनता है । इस 'मधुकुक्कुटी' शब्द में 'मधु' का अर्थ मीठा होने से विशेषण होता है । यह विशेषणवाची शब्द छोड़ कर 'कुक्कुटी' शब्द रह जाता है । कुक्कुट, कुक्कुटी और कुक्कुटिका पर्यायवाची शब्द हैं। ये तीनों पर्यायवाची शब्द होने से समानार्थक शब्द हैं । (१) हम वैद्यक ग्रंथों में देखते हैं कि विशेषण सहित तथा विशेषण बिना शब्द पर्यायवाची शब्द होने से समानार्थक हैं । जैसे :
(१ - - नागकेशर) चाम्पेयः केशरो नागकेशर : कनकाङ्क्षयः । महौषधं राजपुष्पः फलकः स्वरघातनः ॥ (शालिग्राम निघण्ट कर्पूरादि वर्ग )
(२ - जटामांसी) जटामांसी जटी पेषी लोमशा जटिला मिसिः । मांसी तपस्विनी हिस्रा मिषिका चकवर्तिनी ॥ ( ३- पिप्पलीमूल) मूलं तु पिप्पलीमूलं ग्रान्यिकं चटकाशिरः । कणमूल कोलमूलं चटिका सर्वग्रान्थिकम् ॥